- डा. जयजयराम आनंद
- काले काले बादल

काले - काले बादल आते
सागर से पानी भर लाते
रिमझिम - रिमझिम बन जब बरसें
सुख सपने सबको दे जाते
काले - काले पहाड़ ऐसे
धुनी रूई के ढेर हों जैसे
मौसम के संग रूप बदलते
देखते हैं फिर ऐसे - वैसे
मोर पपीहा तितली नाचें
दादर - झींगर पोथी बांचें
कुँआ - बाबड़ी ताल - तलैया
खेत फसल की खिलती बांछें
पवन जहाँ ले जाए चल दें
गरज - गरज कर गुस्सा उगले
बीच - बीच में चमके बिजली
पत्थर, कहीं फूल बन बरसे
वन वसंत की महिमा न्यारी
फूल जड़ी दुल्हन की सारी
हँसता है बन - बीहड़ जंगल
बाग बगीचा क्यारी - क्यारी
फूल जड़ी दुल्हन की सारी
हँसता है बन - बीहड़ जंगल
बाग बगीचा क्यारी - क्यारी
वन वसंत की महिमा न्यारी
नागफनी जब बन ठन निकली
तब बबूल की दुनिया मचली
फूलों ने हँस अगवानी की
कहा शूल रक्षक है असली
जब वसंत पलाश घर पहुँचा
लाल - लाल घर रंगा समूचा
सरसों , अमलतास, गुलमोहर
बेच रहे रंगीन गलीचा
दिशा - दिशा में जमा रंग है
सारी दुनिया देख दंग है
फूले नहीं समाता मधुवन
ऋतुओं का ऋतुराज संग है
पता - आनंद प्रकाशन, प्रेम निकेतन, ई 7/70,
नागफनी जब बन ठन निकली
तब बबूल की दुनिया मचली
फूलों ने हँस अगवानी की
कहा शूल रक्षक है असली
जब वसंत पलाश घर पहुँचा
लाल - लाल घर रंगा समूचा
सरसों , अमलतास, गुलमोहर
बेच रहे रंगीन गलीचा
दिशा - दिशा में जमा रंग है
सारी दुनिया देख दंग है
फूले नहीं समाता मधुवन
ऋतुओं का ऋतुराज संग है
पता - आनंद प्रकाशन, प्रेम निकेतन, ई 7/70,
अशोका सोसाइटी, अरेरा कालोनी, भोपाल (म.प्र)
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