दो गीतिकाएं
रात नशीली है
थोड़ी पीली है
बीज अभी रोपो
धरती गीली है
जले, जलाये क्या ?
माचिस सीली है
मन सपने देखे
तबियत ढीली है
सहल नहीं उल्फत
राह कंटीली है
मुद्राये मोहे
देह लचीली है
रूप सुदर्शन है
दृष्टि रसीली है
सत्य कहा जब से
नीली पीली है
सरल नहीं मानना
बहुत हठीली है
व्यवहार अरूचिकर है, तो है
उपवन नष्ट हुआ मधुऋतु में
दोष दूसरों पर है, तो हैं
हँस मुस्कराकर ह्रदय चुराता
वह जादूगर है, तो है
उसको प्यार ज़हर लगता है
वह किसी का मुकद्दर है, तो है
हमने चाहा ही नहीं उसको
रूप का समुन्दर है, तो है
राग ही हमको नहीं दुनिया से
यह दुनिया दुस्तर है, तो है
पता - डी - 4, उदय हाउसिंग सोसाइटी, वैजलपुर, अहमदाबाद - 380051
- रमेश चन्द्र शर्मा ' चन्द्र'
रात नशीली है
थोड़ी पीली है
बीज अभी रोपो
धरती गीली है
जले, जलाये क्या ?
माचिस सीली है
मन सपने देखे
तबियत ढीली है
सहल नहीं उल्फत
राह कंटीली है
मुद्राये मोहे
देह लचीली है
रूप सुदर्शन है
दृष्टि रसीली है
सत्य कहा जब से
नीली पीली है
सरल नहीं मानना
बहुत हठीली है
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व्यवहार अरूचिकर है, तो है
उपवन नष्ट हुआ मधुऋतु में
दोष दूसरों पर है, तो हैं
हँस मुस्कराकर ह्रदय चुराता
वह जादूगर है, तो है
उसको प्यार ज़हर लगता है
वह किसी का मुकद्दर है, तो है
हमने चाहा ही नहीं उसको
रूप का समुन्दर है, तो है
राग ही हमको नहीं दुनिया से
यह दुनिया दुस्तर है, तो है
पता - डी - 4, उदय हाउसिंग सोसाइटी, वैजलपुर, अहमदाबाद - 380051
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