बैल या बेटे
- हसमुखरामदेवा पुत्रा
प्रभु ने कलवे की प्रार्थना को स्वीकार किया और एक नहीं दो बेटे एक साथ दे दिये। जुड़वे बेटे पाकर कलवा खुश हो गया। प्रभु को आनंद से लड्डु खिलाएं।
जब दोनो बेटे बड़े हो गये तब दोनों की शादी कर दी। बाद में जब बटवारे की बात आई तो दोनो बेटे ने कलवे को अपने साथ रखने से इन्कार कर दिया।
कलवे ने क्रोध भरे स्वर में कहा - मकान - जायजाद, बैल - सब कुछ मेरे हैं ... आपका कुछ भी नहीं । दोनों बेटे बाप से अलग हो गये।
आज कलुवा बहुत सुखी है। दोनों बेटो ने साथ नहीं दिया। लेकिन दो बैलों ने साथ दिया।
कलवे हांकते - हांकते बोलने लगा - यही दो बैल मेरे साथी है ... यही मेरे सहारे हैं... मैं बहुत सुखी हूं ...।
फिर प्रभु से कहा - हे प्रभु , यही दो बैल मेरे बेटे थे ... और आज भी बेटे जैसे हैं। मैंने आपके सामने बेटे की भीख क्यों मांगी थी ? बेटे तो मेरे पास ही थे ....।
2.अपना अपना भाग्य
कलवे हल समेत बैल को लेकर मुस्कराता हुआ आगे बढ़ रहा था ...।
पुत्र का पार्थिव शरीर लिए उसकी माँ तथा पिता रास्ते पर चल रहे थे।
पुत्र की माँ ने कहा - हाय, भगवान। तुने यह क्या किया ? मेरा एक ही बेटा था उसको भी तुने ले लिया। यह बुढ़ापे का सहारा बनता, तुमने पुत्र सुख ले लिया। हम भिखारी थे, अब जिंदगी के भिखारी हो गये।
पुत्र के पिता ने आश्वासन देते हुए कहा - अरी, भगवान ने अच्छा ही किया। यह हमारा पुत्र बड़ा होकर हमारी तरह भिखारी ही बनता, दुखी होता। बुढ़ापे में हम यह दुख कैसे देख सकते ? भगवान ने अच्छा किया। अपना - अपना भाग्य।
दोनों मौन हो गये। पुत्र का पार्थिव शरीर लिए उसकी माँ तथा पिता तेजी से आगे चलने लगे। अपना - अपना भाग्य आजमाने ...।
पुत्र का पार्थिव शरीर लिए उसकी माँ तथा पिता रास्ते पर चल रहे थे।
पुत्र की माँ ने कहा - हाय, भगवान। तुने यह क्या किया ? मेरा एक ही बेटा था उसको भी तुने ले लिया। यह बुढ़ापे का सहारा बनता, तुमने पुत्र सुख ले लिया। हम भिखारी थे, अब जिंदगी के भिखारी हो गये।
पुत्र के पिता ने आश्वासन देते हुए कहा - अरी, भगवान ने अच्छा ही किया। यह हमारा पुत्र बड़ा होकर हमारी तरह भिखारी ही बनता, दुखी होता। बुढ़ापे में हम यह दुख कैसे देख सकते ? भगवान ने अच्छा किया। अपना - अपना भाग्य।
दोनों मौन हो गये। पुत्र का पार्थिव शरीर लिए उसकी माँ तथा पिता तेजी से आगे चलने लगे। अपना - अपना भाग्य आजमाने ...।
- ग्राम - महियारी,वाया - बांटवा, जिला - पोरबंदर (गुजरात)
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