- अब्दुस्सलाम ' कौसर'
वो आइना जो कभी बन संवर के देखते हैं
वो उसके हुस्न की मासूमियत सुब्हानल्लाह
सुना है उसको फ़रिश्ते ठहर के देखते हैं
बलाएं लेती है उसका बहारे सुब्हे - चमन
वो यूं ही जब कभी जलवे सहर के देखते हैं
नहा के जब वो निकलता है जु़ल्फ बिखराए
तो उसको भागते बादल ठहर के देखते हैं
ये किसकी याद में रोता है कौन छुपछुपकर
चलो कि इसकी भी तहक़ीक कर के देखते हैं
जला के शमा कभी ताक पर जो रखता है
तो उसकी शक्ल पतंगे ठहर के देखते हैं
कोई रकीब है मेरा न मैं किसी का रकीब
न जाने क्यों मुझे कुछ लोग डर के देखते हैं
सुना है बनती है किस्मत वहाँ गरीबों की
सो उसकी बज़्म में हम भी ठहर के देखते हैं
सुना है उसको अयादत का श़ौक है कौसर
सो अपने आप को बीमार कर के देखते हैं
- स्टेशन पारा, राजनांदगांव (छग.)
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