1
फिर पुराने राग लेकर चल रही है जिंदगी
इक सुलगती आग लेकर चल रही है जिंदगी।
घाव कितने ही मिले पर वक्त ने सारे भरे,
जख्म के कुछ घाव लेकर चल रही है जिंदगी।
चेहरे पे चेहरा चढ़ाए लोग मिलते हैं यहीं,
घृणा और अनुराग लेकर चल रही है जिंदगी।
अपने अधिकारों की अब तो बात मत करिये यहां,
बस तपस्या त्याग लेकर चल रही है जिंदगी।
दुश्मनों की क्या जरुरत दोस्त ही काफी यहां,
आस्ती में नगा लेकर चल रही है जिंदगी।
2
फिर से बदल रहे हैं निगहबान हमारे,
हो जायेंगे पूरे सभी अरमान हमारे।
नारों के वायदों के दौर अब भी चल रहे,
फिर भूल जायेगे सभी अहसान हमारे।
कुछ देर की तसल्ली राहत हमें मिले,
अवतार लेके आयेंगे भगवान हमारे।
कितने दिनों तक हमको यूं बहलाओगे जनाब,
तेवर बदल रहे हैं ये ईमान हमारे।
जब भी मशाले हाथ में अपने आयेंगी
तब ही यहां पे होंगे उत्थान हमारे।
- सावरकर वार्ड, कटनी [ म.प्र. ]
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