- समीक्षक-कृष्ण कुमार भट्ट

अमन गजल संग्रह में उर्दू शब्दों की अधिकता है इसलिए गजलों के अंत में उर्दू शब्दों के अर्थ दिए गये हैं लेकिन ये कम है। सामान्य वर्ग के लिए कुछ पाठकों की संग्रह पर राय थी कि मिरे शब्द को मेरे और तिरे को तेरे लिखना या एकाध मेरे लिखा भी है। ईद का चाँद को एक गजल में ईद की चाँद और दूसरे गजल में ईद का चाँद सम्बोधन दिया है - अमन गजल संग्रह की इस शिल्प प्रक्रिया पर साहित्य अकादमी दिल्ली के सदस्य गिरीश पंकज ने लिखा है - रीना अभी कविता की दुनिया में कदम रख रही हैं। शिल्प को पकड़ने की कोशिश में हैं। शिल्प के लिए सुदीर्घ साधना करनी पड़ती है, तब सर्जक पारंगत होता है। रीना की 42 साधना अवस्था है इसलिए परिपक्वता की कमी दिखती है लेकिन कहीं कहीं तो वे मँजी हुई रचनाकार की तरह बतियाती है। पृष्ठ - 9
छंदबद्धता में रीना अधिकारी ने समाज की निराशा - आशा, रोना - हंसना, इतिहास के संबंध, प्रकृति, मजहब, भारत पाक, फिल्मी प्रभाव, जिंदगी करीब से, बार बार कबीर की याद, मुखौटे, नकाब, अपढ़, गुजरे जमाने की याद, हवाओं में प्रजातंत्र को उभार कर अमन की तलाश की है -
वह तो है इक जिंदा - जिंदा सी गजल
या फिर उनको आप अल्फाजों का ख्वाब कहिये।
गजलें घुट रही हैं बंद डायरी में,
कह रहीं इक दूसरे से, बख्ते - खराम हो जाये।
अमन शांति की खोज के लिए कवयित्री ने अमन गजल संग्रह का समर्पण वैष्णव जन तो तेणे कहिये जे, पीड़ परायी जाने रे। क्षमा याचना के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित किया है, भूमिका शीर्षक राम अधीर सम्पादक ने - गा रहे हैं आप लेकिन दर्द मेरा और ध्वंसावशेष त्रिपाठी ने रीना की गजलें, गूंगी नहीं बोलती है शीर्षक के साथ अमन की अनुशंसा की हैं -
दिल ने लिक्खा है अमन का संदेश सच्चाई से,
आप इसे किताब कहिये, या आतंक का जवाब कहिये।
अमन की इबारत लिखते समय सच्चाई, शहादत, अपनी खमोशी, दुष्यंत कुमार की गजलों की भाषा, रोटी कपड़ा और मकान, नेत्रदान, हिन्दू मुस्लिम एकता, कविता में कुली, निराला की वह तोड़ती पत्थर की मजदूरिन, वृद्धाश्रम के पैबन्द, इतिहास का नया चेहरा, कार्य की नियमितता, खराब समय, मुसाफिर, शहनाई के स्वप्र, शहर - गाँव, पूरब - पश्चित, गुजरे जमाने की याद, गरीब का घर, अपनेपन का समाजवाद, ग्लोबल विश्व, हाथ की लकीरों भाग्य रेखा से अलग जिंदगी, माँ, रेत का शहर, जिंदगी की सीमित समझ, उधार की जिंदगी, गाँधी की अहिंसा, शहर में नाम और दूसरों का इतिहास - दर्द अपने व्यक्तित्व एवं प्रतिभा में महसूस कर गजलें लिखी है -
बहुत सन्नाटा था बस्ती में चारों ओर,
जले हुये घरों के बाशिन्दे ना जाने कहाँ गये।
वहाँ जहाँ कोई न जाता था मौत से डर कर,
भूखे वो बच्चे रोटियों को उठाने वहाँ गये।
नफरतों को बाँटना जहाँ में, होगा दस्तूर तुम्हारा,
अमन की हमारी मिट्टी की इबादत है।
अमन गजल संग्रह के प्रकाशक और राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी, छत्तीसगढ़ शाखा के अध्यक्ष डॉ. सुधीर शर्मा ने फ्लेम पर लिखा है - हाल में मुंबई में जो आतंकी हमला हुआ था, उससे रीना जी हम सब की तरह दुखी हुई थीं। इस संग्रह का जन्म भी उन्हीं दिनों हुआ है। सत्य मिथ्या के कुरूक्षेत्र में अमन विश्व शांति पुरूस्कार की भाव भूमि पर लिखा गया दस्तावेज और रोशन हाथों की इतिहास पर की गई दस्तकें हैं।
- गोल बाजार, मुंगेली (छ.ग.)
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