राजनांदगांव। अंचल की साहित्यिक संस्था साकेत साहित्य परिषद सुरगी द्वारा परिषद के संरक्षक एवं साहित्यकार कुबेर सिंह साहू द्वारा रचित कहानी संग्रह ' उजाले की नीयत' पर समीक्षा गोष्ठी का आयोजन बसंतपुर में किया गया।
संस्था के सलाहकार ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' ने कहा कि उजाले की नीयत के माध्यम से लेखक ने व्याप्त आडम्बर, अराजकता, दिखावा एवं बनावटीपन को बखूबी चित्रित किया है। श्री साहू की भाषा शैली चुटीली एवं प्रवाहमयी है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समीक्षक एवं साहित्यकार डॉ. शंकर मुनिराय ने कहा कि श्री साहू की कहानी व्यंग्य संग्रह है - पुलिस वाले का छापा कहानी में यह स्पष्ट देखा जा सकता है। कहानी की शैली में बिल्कुल नयापन है । भाव तथ्य में नयापन नहीं हैं जबकि रचनाओं में नयापन होना चाहिए। नारी जीवन की विकलता को लेखक ने बेबाक और सधे हुए ढंग से प्रस्तुत किया है। कुल मिलाकर संग्रह में संग्रहीत कहानियाँ पूर्णत: कहानियाँ नहीं है कुछ व्यंग्य है तो कुछ कहानी जिसमें लेखक अपने भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णत: सफल हुआ हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. आर. पी. कोसरिया ने कहा कि कुबेर की कहानियाँ व्यंग्य से भरी हुई है। कहीं - कहीं विधा से हटकर अतिक्रमण होने के कारण कुछ कहानियाँ संदेह के घेरे में हैं फिर भी कथ्य सप्रेषण में ये पूर्णत: सफल है।
वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य सरोज द्विवेदी ने कहा कि उजाले की नीयत तो साफ होती है परन्तु जो उजाले की नीयत पर शंका करे वही साहित्यकार है। उन्होंने कहा कि कथा लेखन में राजनांदगांव का बहुत पुराना इतिहास रहा है। बीसवीं सदी में बख्शी जी इसके प्रमाण थे। इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में कुबेर सिंह साहू तथा सुरेश सर्वेद का नाम कथा लेखन में अग्रणीय है। आत्माराम कोशा ' अमात्य', ए. के. द्विवेदी, गोपाल सिंह कलिहारी, यशवंत मेश्राम, सुरेश सर्वेद,ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में कवि गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया जिसमें वीरेन्द्र तिवारी ' वीरु', कुलेश्वर दास साहू, लखन लाल साहू ' लहर', फकीर प्रसाद साहू, पवन यादव 'पहुना' दिनेश नामदेव, गैंदलाल साव '' दीया '', महेन्द्र बघेल मधु, अखिलेश्वर प्रसाद मिश्रा, गिरीश ठक्कर, खेलन साहू, नरेन्द्र तायवाड़े ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' ने किया। आभार व्यक्त कुबेर साहू ने किया।
टोटल बकवास कविता संग्रह विमोचित
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टोटल बकवास का विमोचन करते महापौर नरेश डाकलिया,सम्पादक शरद कोठारी रवि श्रीवास्तव एवं लेखक गिरीश ठक्कर |
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विमोचन अवसर पर उपस्थित रचनाकार एवं गणमान्य नागरिकगण |
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महापौर नरेश डाकलिया का स्वागत करते सुरेश सर्वेद |
राष्ट्रीय ख्याति के दिव्य पुरस्कार घोषित
भोपाल। शीर्ष ऐतिहासिक उपन्यासकार, कवि एवं चित्रकार स्वगीँय अम्बिका प्रसाद दिव्य की स्मृति में साहित्य सदन, भोपाल द्वारा विगत 13 वर्षों से दिये जा रहे राष्ट्रीय ख्याति के अत्यधिक चर्चित दिव्य पुरस्कारों की घोषणा विगत 7 मार्च 2010 को होटल आमेर पैलेस के सभागार में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में की गयी।
पुरस्कारों की घोषणा मुख्य अतिथि एवं खण्डवा के वन संरक्षक शशि मलिक ने की। वर्धा के शंम्भू दत्त सती को उपन्यास ओ इजा, डॉ उषा अग्रवाल कुरूक्षेत्र को कथा संग्रह '' सोने का पिंजड़ा '' तथा श्री शैलेय उद्यमसिंह नगर को काव्य संग्रह के लिए प्रतिष्ठित दिव्य पुरस्कार देने की घोषणा की गई। इसके अतिरिक्त श्री गदाधर नारायण लखनऊ तारकनाथ उपन्यास, डॉ. नताशा अरोड़ा नोएडा बहुरंगी कहानियां, श्री किशन तिवारी भोपाल मैं तुम हो जाऊ काव्य, श्री मोहन चंद्र त्रिपाठी इटावा छूकर उजले पंख काव्य, डॉ दिनेश कुमार शर्मा कासगंज मिथक और दिनकर आलोचना, डॉ स्वाति तिवारी भोपाल अकेले होते लोग निबंध संग्रह, डॉ. अंजु दुआ जैमिनी फरीदाबाद मोर्चे पर स्त्री निबंध संग्रह, डॉ चंद्रकांत मेहता अहमदाबाद चलना हमारा काम है निबंध संग्रह, श्री अमृतलाल मदान कैथल माया मृग नाटक, श्री अनुज खरे भोपाल चिल्लर चिंतन व्यंग्य, डॉ. राज गोस्वामी दतिया ओंछे वार ककई से लोक साहित्य, डॉ. जलज भादुड़ी कोलकाता सुनील गंगोपाध्याय की कहानियों का अनुवाद, श्री वेदप्रकाश कंवर दिल्ली दरवाजे खुल गये बाल साहित्य, एवं डॉ. भैरुलाल गर्ग भीलवाड़ा बाल वाटिका पत्रिका को अम्बिका प्रसाद दिव्य - रजत अलंकरण प्रदान करने की घोषणा की गई। दिव्य पुरस्कारों के संयोजक एवं दिव्यालोक पत्रिका के संपादक श्री जगदीश किंजल्क ने अपने स्वागत भाषण में बताया कि दिव्य पुरस्कारों के लिए साहित्य की अनेक विधाओं की 135 कृतियाँ प्राप्त हुई थी। पुरस्कार घोषणा समारोह की अध्यक्षता नागालैण्ड के पूर्व राज्यपाल पदमश्री ओ. एन. श्रीवास्तव ने की। इस अवसर पर आपने कहा कि दिव्य पुरस्कारों को मीडिया का सहयोग निरन्तर मिल रहा है, यह प्रसन्नता की बात है। दिव्य जी का साहित्य कालजयी है। पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष श्री मोती सिंह पूर्व आई . ए. एस. ने कहा - दिव्य जी जैसे साहित्यकार, चित्रकार बिरले ही पैदा होते हैं। दिव्य पुरस्कार साहित्य जगत की अदभुत उपलब्धि है। श्री जगदीश किंजल्क ने बताया कि दिव्य पुरस्कारों के निर्णायक मंडल के सदस्य हैं - श्री मोती सिंह, श्री रामेश्वर मिश्र पंकज,श्री प्रभुदयाल मिश्रा, श्री हरि जोशी, श्री नरेन्द्र दीपक, श्री विजयदत्त श्रीधर, श्री प्रियदर्शी खैरा, श्री माताचरण मिश्र, डॉ. जवाहर कनावट, श्री कुमार सुरेश, प्रो. आनंद वर्धन, श्री कैलाश नारायण शर्मा, श्रीमती विजयलक्ष्मी विभा, एवं श्री जगदीश किंजल्क।
घोषणा समारोह का शुभारंभ प्रसिद्ध कवयित्री एवं दिव्य जी की छोटी सुपुत्री श्रीमती विजय लक्ष्मी विभा के पद गायन से हुआ। वरिष्ठï पत्रकार श्री घनश्याम सक्सेना ने सभी पत्रकारों का आभार माना। इस अवसर पर दिव्यालोक की प्रबंध संपादक श्रीमती राजो किंजल्क भी उपस्थित थी।
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