डॉ. श्रीमती शीला शर्मा
आज का समय सामाजिक संकटबोध का समय है। संवेदनाहीन स्थिति समाज और साहित्य के लिए घातक है। बदलते मूल्यों में बाजारवाद का असर साहित्य पर पड़ रहा है। ऐसे में प्रेमचंद के साहित्य अध्ययन से दिशा बोध मिल सकता है। पूंजीवादी व्यवस्था की चकाचौंध में प्रेमचंद, यशपाल, मंटो, निराला, सुमित्रानंदन पंत, मुक्तिबोध भले ही नकारे जाये लेकिन मर्मभेदी दृष्टि वाले पाठक इन्हें सदा अमर रखेंगे तथा सामाजिक अवरोधों को उजागर करते रहेंगे।
प्रेमचंद की ईदगाह कहानी में बताया गया है कि एक बच्चा अपनी दादी माँ के लिए मेले से चिमटा लाता है। जबकि दादी ने खिलौना खरीदने के लिए उसे पैसे दिये थे। एक जिम्मेदार बच्चा दादी माँ की जरुरत से जुड़ा है जिससे रिश्तों में मिठास पैदा होती है। यही भावना की गरमाहट आज के हालात में लुप्त प्राय है। गोदान उपन्यास में गरीब किसान का जीवन तथा प्रेम की परिभाषा सच्चे प्रेम की अनुभूति आदि का विचार किया गया है। सद्गति कहानी में सवर्ण का जुल्म हरिजन पर बताया गया है जो आज के लिए भी एक सीख है। परीक्षा कहानी में दीवान जी की उम्मीदवारों की चयन - दृष्टि बड़ी सूक्ष्म है जो आज भी प्रासंगिक हैं नौकरी पाने के लिए तरह - तरह का भ्रष्टाचार होता है इसका अंत परीक्षा कहानी के दीवान जी की तरह हो तो भ्रष्टाचार की समस्या से मुक्ति मिल सकती है। पंच - परमेश्वर का न्याय ग्रामीण सचिवालय के लिए एक मिसाल है। पूस की रात पशु - प्रेम के लिए प्रसिद्ध है। गबन उपन्यास में नारी के विवेकशील निर्णय का उदाहरण है। तथा गहनों के प्रति हानिकारक होता है। किसी भी चीज की अति बुरी होती है। ग्राम्य जीवन तो उनकी रचनाओं का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसमें ग्रामीण समाज में व्याप्त समस्त रुढ़ियों परम्पराओं, छूआछूत, अंधविश्वास आदि का सजीव चित्रण हमें मिलता है।
हिन्दी में राजनीतिक उपन्यासों का अभाव नहीं है लेकिन कर्मभूमि राजनीतिक विचारधारा एवं जीवंत स्थितियों के चित्रण के लिए हमेशा रेखांकित किया जाता रहेगा।
संपूर्ण साहित्य में देखा जाये तो शोषण एवं अन्याय से लड़ने का उनका तरीका गजब का है। जाति भेद, वर्ग भेद जैसे सामाजिक समस्या को दूर करने, सच्ची मानवता स्थापित करने का काम प्रेमचंद जी ने अपनी लेखनी के माध्यम से किया है। इसमें कोई दो मत नहीं है। सामंतवादी व्यवस्था के लिए शतरंज के खिलाड़ी में एक युग की कथा को बयान किया गया है।
वर्तमान साहित्य लेखन एवं लेखकों में नई दृष्टि में भी वह गहराई नहीं है जो होनी चाहिए। न साहित्य पढ़ते है न ठीक से लिखते हैं। चीजों को ठीक से देखने परखने की दृष्टि हमें प्रेमचंद के साहित्य अध्ययन से मिल सकती है। उनका जन्म दिवस तभी सार्थक होगा जब हम होरी के दर्द को समझेंगे। घीसू और माधव के साथ न्याय करेंगे। पंच - परमेश्वर को फिर से स्थापित करेंगे। परीक्षा कहानी के दीवान जी की उम्मीदवारों की नौकरी दिलाने की चयन प्रक्रिया को आज प्रासंगिक बनाये।
क्वा. नं. 8 ए / 37 सेक्टर -
5, भिलाई नगर, जिला - दुर्ग [ छत्तीसगढ़ ]
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