सुरेश सर्वेद
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सुरेश सर्वेद |
विवाह हमारी लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य अंग है। विवाह को छत्तीसगढ़ी में '' बिहाव '' कहा जाता है। आंचलिक पहचान को संजोये रखने के कारण छत्तीसगढ़ी वैवाहिक लोक गीतों की अपनी अलग पहचान हैं। छत्तीसगढ़ में बिहाव '' मंगनी जँचनी '' से शुरू होकर बिदा तक सम्पन्न होता है। बिहाव के दरम्यान अनेक प्रकार के लोक गीतों का प्रयोग किये जाते हैं।
मंगनी जँचनी का विस्तृत अर्थ यह है कि वर के लिए वधू एवं वधू के लिए वर को देखना - परखना तथा मांगना। इस समय कुल - गोत्र देख कर '' रास बरग '' मिलाया जाता है। '' दिन बादर '' तय होने के बाद '' विवाह संस्कार '' शुरू होता है। इस अवसर पर जो लोक गीत प्रचलित है -
सुरहिन गइया के गोबर मंगाए
चारि खूंट अंगना लिपाए
सोने के थारी गंगा जल पानी
मोतियन चउक पुराय
सोने के करसा कपूर के बाती
चंदन पिढुली मढ़ाय
'' मंगनी जँचनी '' के बाद '' लगिन बारात '' का अवसर आता है। इसे '' छोटी बारात '' (पीला बारात ) भी कहा जाता है। इसमें वर का बारात जाना आवश्यक नहीं होता अपितु उनके परिजन '' छोटी बारात '' लेकर जाते हैं। इस रस्म के साथ वैवाहिक धूमधाम शुरू होता है-चारि खूंट अंगना लिपाए
सोने के थारी गंगा जल पानी
मोतियन चउक पुराय
सोने के करसा कपूर के बाती
चंदन पिढुली मढ़ाय
बाजा रे बाजे डमऊ नईये रे, डमऊ नइये
तोर घर के दुआरी म समउ नई हे, होई रे होई रे ...
लाली गुलाली छिंचत आयेंव
तोर घर के मुहाटी ल नई पायेंव, होई रे होई रे
साते दुआरी पूछत आयेव, हो पूछत आयेव
तोर घर के मोहाटी ल नई पायेंव होई रे होई रे॥
तोर घर के दुआरी म समउ नई हे, होई रे होई रे ...
लाली गुलाली छिंचत आयेंव
तोर घर के मुहाटी ल नई पायेंव, होई रे होई रे
साते दुआरी पूछत आयेव, हो पूछत आयेव
तोर घर के मोहाटी ल नई पायेंव होई रे होई रे॥
तोला माटी कोड़ेला नइ आवय मीत धीरे - धीरे ..
धीरे - धीरे अपन कनिहा ला ढील, धीरे - धीरे ..
तोला साबर धरे ला नइ आवय मीत धीरे - धीरे ..
धीरे - धीरे अपन तोलगी ला ढील, धीरे - धीरे ..
तोला माटी बोहे ला नई आवय मीत, धीरे - धीरे ..
धीरे - धीरे अपन भाई के पागी ल तीर, धीरे - धीरे ..
धीरे - धीरे अपन कनिहा ला ढील, धीरे - धीरे ..
तोला साबर धरे ला नइ आवय मीत धीरे - धीरे ..
धीरे - धीरे अपन तोलगी ला ढील, धीरे - धीरे ..
तोला माटी बोहे ला नई आवय मीत, धीरे - धीरे ..
धीरे - धीरे अपन भाई के पागी ल तीर, धीरे - धीरे ..
एक तेल चढ़िगे ओ हरियर - हरियर,
ओ हरियर - हरियर
मड़वा मा दुलरू तोर बदन कुम्हलाय
कोन तोर लानय मोर हरदी - सुपारी ओ हरदी - सुपारी
कोन तोर लानय कांचा तिल्ली काई तेल ...
ददा तोर लानय हरदी सुपारी, ओ हरदी सुपारी
दाई तोर लानय कांचा तिल्ली, काई तेल ...
कोन चढ़ावय तोर तन भर हरदी, ओ तन भर हरदी
कौने देवय तोला अंचरा भर छांव ....
कहंवा रे करसा भई तोर जनामन , हो तोर जनामन
कहंवा रे करसा तंय लिये अवतार ...
कारी भिंभौरी दीदी मोर जनामन, दीदी मोर जनामन
कुम्हार घर मंय लियेव अवतार ...
ओ हरियर - हरियर
मड़वा मा दुलरू तोर बदन कुम्हलाय
कोन तोर लानय मोर हरदी - सुपारी ओ हरदी - सुपारी
कोन तोर लानय कांचा तिल्ली काई तेल ...
ददा तोर लानय हरदी सुपारी, ओ हरदी सुपारी
दाई तोर लानय कांचा तिल्ली, काई तेल ...
कोन चढ़ावय तोर तन भर हरदी, ओ तन भर हरदी
कौने देवय तोला अंचरा भर छांव ....
कहंवा रे करसा भई तोर जनामन , हो तोर जनामन
कहंवा रे करसा तंय लिये अवतार ...
कारी भिंभौरी दीदी मोर जनामन, दीदी मोर जनामन
कुम्हार घर मंय लियेव अवतार ...
हाथे जोरि न्यौतेंव मोर देवी देवाला
हो देवी देवाला
घर के पुरखा मन हो ओ सहाय ...
बिनती करेंव मंय माथ नवायेंव
हो माथ नवायेंव
कर लेहो एला स्वीकार ....।
मायन के बाद '' देवतला '' की रस्म पूरी की जाती है। बारात प्रस्थान के पूर्व वर मंगल कामना के लिए देवी - देवताओं की पूजा अर्चना हेतु देवालयों में जाता है। इस रस्म में केवल महिलाओं की ही हिस्सेदारी होती है। छत्तीसगढ़ी बिहाव में हरदीयाही कार्यक्रम होता है। इसे चिकट भी कहा जाता है। इस अवसर पर मड़वा के नीचे हर छोटा - बड़ा व्यक्ति हरदी के रंग से रंग जाता है। इस अवसर पर प्रस्तुत लोकगीत -हो देवी देवाला
घर के पुरखा मन हो ओ सहाय ...
बिनती करेंव मंय माथ नवायेंव
हो माथ नवायेंव
कर लेहो एला स्वीकार ....।
अंचरा के छांव दाई मोला देबे
देवऊ भउजी अंचरा के छांव।
अंचरा के छांव दीदी मोला देबे
देवऊ काकी अंचरा के छांव।
देवऊ भउजी अंचरा के छांव।
अंचरा के छांव दीदी मोला देबे
देवऊ काकी अंचरा के छांव।
दे तो दाई दे तो दाई अस्सी ओ रूपइया
सुन्दरी ला लातेंव मंय बिहाये ओ दाई ...
सुन्दरी - सुन्दरी बाबू तुम झन रटिहौ
गा सुन्दरी के देश बड़ा दूरै रे भइया ...
तोर बर लाहवं दाई रंधनी परोसनी
ओ मोर बर घर के सिंगार ओ दाई
गोड़े बर रूचमुचा पनही
छांव बर छतरी तानय, हां - हां जी चले जाबो
सुन्दरी बिहाव लाये बर देबे इक तलवारी चढ़ेबर
लीली हंस घोरी, हां - हां जी चले जाबो सुन्दरी बिहाय।
सुन्दरी ला लातेंव मंय बिहाये ओ दाई ...
सुन्दरी - सुन्दरी बाबू तुम झन रटिहौ
गा सुन्दरी के देश बड़ा दूरै रे भइया ...
तोर बर लाहवं दाई रंधनी परोसनी
ओ मोर बर घर के सिंगार ओ दाई
गोड़े बर रूचमुचा पनही
छांव बर छतरी तानय, हां - हां जी चले जाबो
सुन्दरी बिहाव लाये बर देबे इक तलवारी चढ़ेबर
लीली हंस घोरी, हां - हां जी चले जाबो सुन्दरी बिहाय।
जुग - जुग जीवो मोर बेटा,
बहुरिया जनम - जनम हेवाती हो
पैया मंय लागेव गौरी अउ दुर्गा
दूसर म लागेव महादेवा हो ...
आवव तुम्मन जल्दी आवव ओ बहुरिया आरती ले के
बड़की ला घलो बलावव ओ बहुरिया आरती ले के
अंगना मं खड़े हे बरतिया सब आ गेंह खड़े हें
बेटा बहू देखव तो गरमा गे हे ....।
बाराती जब बारात लेकर कन्या के गांव पहुंचते हैं तो उन्हें परघाया जाता है। जिसे '' परघनी '' कहा जाता है। बरातियों को परघाकर जेनवास ले जाते हैं इस अवसर पर '' भड़ौनी '' गीत गाकर भड़ी जाती है -बहुरिया जनम - जनम हेवाती हो
पैया मंय लागेव गौरी अउ दुर्गा
दूसर म लागेव महादेवा हो ...
आवव तुम्मन जल्दी आवव ओ बहुरिया आरती ले के
बड़की ला घलो बलावव ओ बहुरिया आरती ले के
अंगना मं खड़े हे बरतिया सब आ गेंह खड़े हें
बेटा बहू देखव तो गरमा गे हे ....।
बड़े - बड़े तोला जानेव समधी मड़वा मं डारेव बांस रे
पांच रूपिया के बाजा लाने जरय तोरे नाक रे ...
मेछा हवय तोर लाम - लाम मुंह हवय तोर करिया रे
समधी बिचारा का करय पहिरे हवय फरिया रे ...
पांच रूपिया के बाजा लाने जरय तोरे नाक रे ...
मेछा हवय तोर लाम - लाम मुंह हवय तोर करिया रे
समधी बिचारा का करय पहिरे हवय फरिया रे ...
करिया करिया दिखथस दुलरू काजर कस नइ आंजे रे
दाई होगे आन जात घर - घर बासी मांगे रे ....
नदिया तीर के पटुवा भाजी पटपट - पटपट करथय रे
आय हे बरितया मन मटमट करथय रे।
अब्बड़ मखना खाये तोर पिराये पेट रे
का लइका बिहाय समधीन हंसिया सही बेंठ रे
पातर - पातर मुनगा फरया पातर लुरय डार रे
पातर हवय समधीन छिनारी ओकर नइये जात रे
आमा पान के बिजना हो हालत डोलत आवय रे
दुलहा डौका दूबर भइगे सीथा बीन - बीन खाय रे।
दाई होगे आन जात घर - घर बासी मांगे रे ....
नदिया तीर के पटुवा भाजी पटपट - पटपट करथय रे
आय हे बरितया मन मटमट करथय रे।
अब्बड़ मखना खाये तोर पिराये पेट रे
का लइका बिहाय समधीन हंसिया सही बेंठ रे
पातर - पातर मुनगा फरया पातर लुरय डार रे
पातर हवय समधीन छिनारी ओकर नइये जात रे
आमा पान के बिजना हो हालत डोलत आवय रे
दुलहा डौका दूबर भइगे सीथा बीन - बीन खाय रे।
जनम - जनम गांठ जोरि दे
ए ज्योतिषी
जनम - जनम गांठ जोरि दे ...
गांठ गुठरी झन छूटय
ए ज्योतिषी
गांठ गुठरी झन छूटय ...
फिर होता है टिकावन का कार्यक्रम। विवाह में आये परिजन अपनी शक्ति अनुरूप टिकावन के रूप में बर्तन, सोना - चांदी रूपए आदि देते हैं। इसे '' दाइज'' भी कहा जाता है -ए ज्योतिषी
जनम - जनम गांठ जोरि दे ...
गांठ गुठरी झन छूटय
ए ज्योतिषी
गांठ गुठरी झन छूटय ...
हलर - हलर मड़वा हालय ओ
ये मोर दाई, खलर - खलर दाइज परय हो ...
सुरहिन गइया के गोबर मंगई ले
दीदी खूंट भर अंगना लिपई ले ओ ...
कोन देवय मोर अचहर - पचहर
कोन देवय धेनू गाय ओ ...।
कोन टिकथय मोर लीली हंसा घोड़वा
कोन देवय मोर कनकथार ओ ....
दाई मोर टिकथे अचहर - पचहर
ददा देवय धेनू गाय ओ ...।
भइया मोर टिकथे लीली हंसा घोड़वा
भउजी देवय कनक के थार ओ ....।
बिहाव का कारूणिक कार्यक्रम होता है '' बिदा ''। इस अवसर पर वातावरण करूणा से ओतप्रोत होता है। वधू पक्ष वाले कन्या को वर पक्ष को सौंपते हैं और बेटी परायी हो जाती है। इस अवसर पर प्रस्तुत लोकगीत -ये मोर दाई, खलर - खलर दाइज परय हो ...
सुरहिन गइया के गोबर मंगई ले
दीदी खूंट भर अंगना लिपई ले ओ ...
कोन देवय मोर अचहर - पचहर
कोन देवय धेनू गाय ओ ...।
कोन टिकथय मोर लीली हंसा घोड़वा
कोन देवय मोर कनकथार ओ ....
दाई मोर टिकथे अचहर - पचहर
ददा देवय धेनू गाय ओ ...।
भइया मोर टिकथे लीली हंसा घोड़वा
भउजी देवय कनक के थार ओ ....।
अलिन - गलिन मा दाई रोवय
ददा रोवय मूसर धारे ओ दीदी ददा रोवय मुसर धारे
बहिनी बिचारी लुकछिप रोवय भाई दण्ड पुकारे,
ओ दीदी
सबो दुख ला बिसरहहौ ओ दीदी सबो दुख ल बिसरहहौ ....।
ददा रोवय मूसर धारे ओ दीदी ददा रोवय मुसर धारे
बहिनी बिचारी लुकछिप रोवय भाई दण्ड पुकारे,
ओ दीदी
सबो दुख ला बिसरहहौ ओ दीदी सबो दुख ल बिसरहहौ ....।
पता
तुलसीपुर, राजनांदगांव (छ.ग.)
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