- अंकुश्री
शीतलता है पानी
निर्मलता है पानी
गरमी तपिस बुझाय
ठंड कराता पानी।
प्यास बुझाता पानी
भूख भगाता पानी
हार चुके जीवन में
आस जगाता पानी।
सुंदरता का पानी
पुरूषार्थ का पानी
आजादी की याद करें
होता काला पानी।
घोड़ा का हो पानी
थोड़ा सा हो पानी
सभी बचाये रखतें
अपना छड़हर पानी।
सूखा में भी पानी
दहाड़ में भी पानी
यह बूते की बात है
बचाये रखना पानी।
उतर न जाये पानी
चढ़ाये रखना पानी
बड़ा ही अनमोल है
संजोये रखना पानी।
बरगद का रेड़
बरगद और रेड़
बढ़ता ही जाता नित
सूंढ - सी डाल फैलाये
बरगद का पेड़।
खड़ा है उसके पास
तार - तार हौंसला ले
एक सूखता हुआ रेड़।
चुस कर धरती का सार
फल से लद कर खड़ा हुआ
बेकार रहने से
और अधिक अकरा हुआ
सेठों की - सी तोंद वाला
बरगद का पेड़।
अपने को खोंखला कर
अंधेरा से टकराने के लिये।
ठंडा - सा तेल देता
सूखता हुआ रेड़।
थोड़ा - थोड़ा ही
अंधकार हटाने के लिये
हर साल उग कर मर जाता
दुबला - पतला परिवार लिये
गरीबों की हड्डी - सा
सूखता हुआ रेड़।
- सी - 204, लोअर हिनू, रांची - 834 002
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