- जगन्नाथ ' विश्व ' -

झिर - झिर झरे बरसात
पनघट पे पाँव फिसले
करे धरती से अंबर बात
घूँघट से लाज फिसले
कारी घटा गरज रही
नव - उपमा परस रही
ले आए मेघा बरात
बिरहन मन गीत ढले
क्वाँरी कली चटक रही
फुलवारी महक रही
भंवरों की उतरी जमात
छलिया रुप छले
बाँसुरिया गूँज रही
पैजनियाँ थिरक रही
अनब्याही संगम की रात
हृदय प्रीत पलें
चौतरफा
चली है चौरफा ये बात
सुहानी आ गई रे बरसात,
प्रेम - पत्र से बादल आए
मनुवा सागर सा लहराए
होगी मन से मन की बात
चली है चौतरफा ये बात
नाचे मोर पपीहा गाए
झरनों का संगीत सुहाए
महकी लता अंक हर पात
चली है चौतरफा ये बात
सागर सरिता की धाराएँ
मस्ती हुई प्यासी आशाएँ
जो थी कल तक अज्ञात
चली है चौतरफा ये बात
- पता - मनोबल, 25 एम. आई. जी., हनुमान नगर, नागदा जं. [ म. प्र. ]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें