- विजय ' तनहा ' -
जिधर देखूं उधर मुझको मंजर दिखाई दे।
कहीं पर बम दिखाई दे कहीं पर खंजर दिखाई दे।
पढ़ी है कौन सी भाषा, बनाया कौन सा मजहब,
जिसे अपने ही भाई में सदा अंतर दिखाई दे।
वतन के हाल पे आँसू बहाओ मत, हँसों यारों,
गुलामी के दिनों से जो बहुत बद्तर दिखाई दे।
लहू अपना बहाकर के किया आजाद भारत को,
उसी भारत में क्यों दागी मुझे खद्दर दिखाई दे।
दिलों में भाव नफरत का यहाँ हर घड़ी दिखे,
धरा में प्यार की पावन क्यों बंजर दिखाई दे।
कहीं मंदिर का है झगड़ा, है मस्जिद का,
ये कुर्सी के लिए झगड़ा यहाँ अक्सर दिखाई दे।
महल ख्वाबों के बनते हैं जो अक्सर टूट जाते हैं,
नसीबों में गरीबों की, सिर्फ छप्पर दिखाई दे।
- पता - अवध भवन, पुवायाँ [ शाहजहाँपुर उ.प्र. ]
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