- रामेश्वर प्रसाद ' इंदु ' -
गाँवों से संसद तक चल
जिसने श्रम के चिन्ह बनाये।
उलझे उनके प्रश्न अनेक
नहीं सुलझते है सुलझाये।।
चीर रहे धरती की सीना
ले नई आश इक प्यास नई।
मन को बंधन से बाँध लिया
आँखों में रखकर स्वप्न कई।।
सपने उनके धुंधले - धुंधले,
जीवन मेंं जो रंग सजाये।
हर खेत - खेत, क्यारी - क्यारी
श्रम से बोकर बीज उगाते।
आलस तक का हटा आवरण,
धरती का कण - कण चमकातें।
जो जग को दें नवल चेतना,
बीच भवँर में उन्हें डुबाये।
श्रमिकों का व्याकुल अन्तर्मन,
बोलो किसने उनका झाँका।
उनकी चिन्ता उनके चिन्तन,
और न मन का दुखड़ा आँका।।
जानें कितनी उम्मीदों पर
जाल अँधेरे के फैलाये।
कृषकों को कब सम्मान मिला,
है कहाँ श्रमिक को मान मिला।
जैसे के तैसे प्रश्न खड़े,
उत्तर न उन्हें निदान मिला।।
सिसके हाथ पाँव के छाले,
- पता - मंजिल इंदु , बड़ागाँव - झांसी,284121[ उ.प्र.]
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