श्याम सखा ' श्याम'
खोटा सिक्का क्या चल पाएगा साहिब
देखना ये रूप भी ढल जाएगा साहिब
सीधा - सादा ख्वाब था अपने मिलन का तो
क्या खबर थी सांप सा बल खाएगा साहिब
कौन जाने था करेंगे इन्तजार और यूं
इक सदी सा एक - इक पल जायेगा साहिब
नेह से सहला दे गर इक बार बाप इसको
बुझ रहा है जो दिया जल जायेगा साहिब
था जिसे हमने पकाया प्या की लौ पर
क्या वो शक के जुगनुओं से जल जायेगा साहिब
यूं भटकने जो लगा है प्रीत नगरी में
दर पे तेरे आ संभल जाएगा साहिब
'श्याम' जी यूं आप तो मत रूठिये हमसे
आपका यूं रूठना खल जाएगा साहिब
- संपादक - मसि कागद,12, विकास नगर, रोहतक
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