- डां. जीवन यदु

चल भइया, अब सावन आ गे॥
अब तरसे मन हा नइ तरसे,
रिमझिम - रिमझिम पानी बरसे,
अइसे लगथे अब किसान ल -
जइसे दाई थारी परसे,
कोंहड़ा ल हे गुड़ मा पागे।
चल भइया, अब सावन आ गे॥
अलकरहा जब बिजली बरथे,
घुड़ुर - घुड़ुर तब बादर करथे,
बछरू दउँड़े पुछी उठाके -
मनखे ऊपर ठाड़ अभरथे,
इंदर हा जस गोली दागे।
चल भइया, अब सावन आ गे॥
दउँड़े लागिन माड़े नरवा,
चूहे लागिन छानी - परवा,
कती - कती के काम ल देखे -
हवे जे मनखे हा एकसरूवा,
पल्ला मार के ढोंड़गा भागे।
चल भइया, अब सावन आ गे॥
बादर आसो नइ हे लबरा,
भरगे भइया खँचवा - डबरा,
देखन डोली लगे लबालब,
भुइँया हा हरियागे जबरा,
नवा - नेवरनिन दुलहिन लागे।
चल भइया, अब सावन आ गे॥
अनपुरना के जेमा बासा,
हे किसान बर ये चौमासा,
प्रकृति - पुरूष हा जेमा मिलथे -
इही हवे दुनिया के साँसा,
गजबे अक सपना सकलागे।
चल भइया, अब सावन आ गे॥
- दाउ चौरा, खैरागढ़, जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)
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