- आनन्द तिवारी पौराणिक

देख रहे हैं अपलक
टकटकी लगाए अनमने
खुली धरती
विस्तृत आकाश
दूर तक स्वच्छन्द मन
कुँलाचे भर लेने की आस
ऊग आए खग - शावकों के पर
उड़ानों के लिए हो रहे तत्पर
थामकर जो ऊँगलियाँ चल रहे
उन आँखों में सपने कितने पल रहे
दूर तक चलना है उनको
स्वर्णिम भविष्य गढ़ना है उनको
अवरोध तो आएंगे निश्चित
दुराशाओं के घन छाएंगे निश्चित
कभी आँधी का भय होगा
कभी तूफान निर्दय होगा
चुभेंगे शूल पथ पर
बिछेंगे फूल भी पथ पर
नहीं रुकेंगे ये बढ़ते कदम
लक्ष्य तक चलना है हरदम
उठे हैं नन्हें हाथ
बुलन्द हौसलें के लिए
खूबसूरत चेहरों पर
खिलती मुस्कानों के लिए
लिखने नई इबारत के लिए
स्वर्णिम भारत के लिए
सुख , शान्ति, सुलह के लिए
घर - घर मिलेगी रोशनी
उस सुबह के लिए ...
- पता - श्रीराम टाकीज मार्ग , महासमुन्द [ छत्तीसगढ़ ]
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