- श्याम ' अंकुर'

यौवन की दहलीज पर , नदियों का परिहास ।।
होकर तेरे पास भी, सौ यौजन हूँ दूर ।
त्रासद जीवन जी रहा, कितना मैं मजबूर ।।
क्या पा लूंगा यार मैं, होकर तेरा दास ।
गर हो रब की चाकरी, सफल रहे सन्यास ।।
बुझी नहीं है आज भी, सागर तेरी प्यास ।
नदियों द्वारा पी गया, सारा ही मधुमास ।।
रंज - रोज होता रहा, अम्न - चैन का खून ।
दहशत, हत्या, लूट का, बदला ना मजमून ।।
तेरे मेरे आज है, इक जैसे हालात ।
हमको डसते दिन रहे, पीड़ा देती रात ।।
अम्न - चैन की लाश पर, आजादी का जश्न ।
खड़ा हुआ है सामने, सबके ही यह प्रश्न ।।
- हठीला भैरूजी की टेक, मण्डोला वार्ड बाराँ (राजस्थान) 32525
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