राजेश जगने ' राज '
करम दिखता है क्या नगीने मेंझलक दिखता है इस पसीने में
जिनके लिये रोजी ही रोज़ा है
वो तलाश नहीं करते रोटी मदीने में
तख्तों ताज के जो फनकार है राज
उन्हें ख़ुदा मिले खुद के पसीने में
ये जहां तो अल्लाह का दरगाह है
क्यों भटकते हो कासी, काबा, मदीने में
ज़र्रा - ज़र्रा पर उनका रहमों करम है
तब ग़ज़ल कहता है कागज के सीने में।
- स्टेशन पारा, वार्ड नं. 11, सोलह खोली, राजनांदगांव [छ.ग.]
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