- शरद शर्मा -
जा बेटा, तैं धरती के पार
तोर मुड़ म हे, करजा अपार
चुन - चुन तैं, बैरी ल मार
पहिराहूं तोला, फूल के हार
मैं बांधेव तोर गठरी म लाड़ू
जा बेटा, तैं मोर दुलारू।
तैं रहिबे सबो ले आगू
झन दिखाबे तैं हर पाछू
छाती म गोली खाबे,
बेटा, बिन जीते, तैं झन आबे
मोर दूध मा, अतका - आगी
मोर बोली म , अतका गोली
ऊंहे मनावें तैं देवारी अऊ
ऊंहेच्च खेलबे तैं होली
छाती म गोली खाबे
बेटा, बिन जीते तैं झन आबे
अपन देश बर, जीबे- मरबे
भूखे - पियासे, भले तैं रहिबे,
सब्बो झन के पीरा हरबे,
अपन भुइंया के पिआस बुझाबे
भले छातीम गोली खाबे
बेटा रे , बिन जीते, तैं झन आबे।
ये जी,
काबर धरती ल लजाथो ?
काबर जन - जन के लहू बोहाथो ?
ये देश, तुंहार नो हे का ?
ये लहू, तुंहार नो हे का ?
काबर अपन ल रोवाथो ?
अऊ काबर बैरी ल हंसाथो ?
काबर मंदिर मा महाभारत मचाथो ?
काबर पनही - चप्पल चलाथो ?
काबर आगी भभकाथो ?
ये ही सबो ल करके तुमन,
का जिनीस ल पा जाथो ?
बेटा रे,
इहीच्च बात ल, समझे ल परही
इंखरेच्च - बर, छाती ठोके ल परही
तैं संसद- बिहाड़ म जाबे
अपन धरती के पिआस बुझाबे
तैं अपन म गोली झन चलाबे
तैं अपन ल झन रोआबे
तैं बैरी ल झन हंसाबे,
तैं कभू पाछू झन देखाबे
भले छाती म गोली खाबे
बेटा रे,
बिन जीते तैं, अपन मुंहूं झन देखाबे
पता - ब्राम्हा्णपारा, राजिम (छ.ग.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें