- प्रस्तुतकर्ता शिवम वर्मा -
एक बार राजा भोज और पंडित माघ घूमते हुए उज्जयिनी से बहुत दूर जा निकले। लौटते हुए वे रास्ता भूल गए। भटकते-भटकते वे एक झोंपड़ी में पहुँचे।
झोंपड़ी की मालकिन एक बुढ़िया थी। उससे उन्होंने पूछा - माँ! यह रास्ता कहाँ जाता है?''
बूढ़ी स्त्री दोनों व्यक्तियों को ध्यान से देखती हुई बोली- यह रास्ता तो कहीं नहीं जाता। हाँ इस पर लोग आया-जाया करते हैं। आप लोग कौन हैं?''
माघ ने कहा- हम यात्री हैं। यात्री!''
बुढ़िया बोली- यात्री तो सिर्फ दो हैं- सूर्य और चाँद। आप कैसे यात्री हुए? सच-सच बताइए, आप लोग कौन हैं? ''
- हम क्षणभंगुर मनुष्य हैं!''
- संसार में क्षणभंगुर तो बस दो ही वस्तुएं हैं- धन और यौवन।''
प्रश्नोत्तर में राजा भोज और माघ जैसे हार गए। फिर भी बोले- हम राजा हैं। ''
बुढ़िया ने कहा- राजा भी सिर्फ दो ही होते हैं! इन्द्र और यम। आप कैसे राजा हैं?''
माघ ने देखा, बुढ़िया का ज्ञान साधारण नहीं है। संभल कर बोले- हम क्षमावान हैं। ''
- भाई! क्षमावान तो एक पृथ्वी है, और दूसरी नारी। आप लोग तो इन दोनों में से कोई भी नहीं लगते हैं।''
भोज और माघ कुछ घबराए। फिर भी धैर्यमय संयत स्वर में बोले- माँ! हम परदेसी हैं। ''
- असम्भव! परदेसी भी सिर्फ दो होते हैं। एक जीवन, दूसरा पेड़ के पत्ते।''
राजा भोज और माघ ने पूरी तरह हार मान कर सिर झुका लिये अपने अज्ञान को स्वीकार करते हुए बोले- माँ! हम तो हार गए। ''
बुढ़िया ने इसे भी स्वीकार नहीं किया। फिर बोली- हारे हुए व्यक्ति भी सिर्फ दो ही होते हैं- एक तो कर्जदार और दूसरा लड़की का पिता। सच-सच बतलाईये, आप लोग कौन हैं? ''
राजा भोज और पंडित माघ लज्जित भाव से चुप-चाप मौन खड़े रहे। तब बुढ़िया स्त्री मुस्कुरा कर बोली- मैं जानती हूँ आप राजा भोज हैं और आप पंडित माघ....... कृपया जाईये यह राह सीधी उज्जयिनी जाती है।''
पता - श्रीजी निवास, जवाहर मार्ग, जैन कालोनी, नागदा जक्शन (म.प्र.)
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