-आलोक तिवारी -
कौन हो तुम
जो आती हो
दबे पाव गुंजयमान-
कर देती हो मेरे
सारे अस्तित्व को।
कौन हो तुम
जिसका मैं विस्तार हूँ
तुम सारांश।
कौन हो तुम जिस्म से -
ऊपर निकलकर
चल पड़ता हूँ
तुम्हारे साथ
मोक्ष के मार्ग में ।
कौन हो तुम
समाधिस्थ
हो युगों से
प्रतीक्षा में जड़।
कौन हो तुम
पुरातन रुह-
की तरह प्राचीनतम
जिसका शिलालेख
में उल्लेख नहीं
जो अलिखित है।
कौन हो तुम
जिसे मैं छूना चाहता हूँ
दूर से
वहां से जहां कुछ -
नजर नहीं आता
वहां आती हो तुम
किसी अनछुए
एहसास की तरह।
कौन हो तुम
तुम मौन का
विस्तार हो
निर्वात की तरह
निर्वात जहां ध्वनि
निशब्द हो जाती है
वहां होते बस
हम और तुम।
पता - पाठक वार्ड, कटनी (म.प्र. ) मोबाईल : 9425466630
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