- इब्राहीम कुरैशी -
इस रुप श्रृंगार के चौराहे पर
क्यों हुआ मेरा मन बैरागी।
जग का हर आकर्षण कहता
देख तो ले जरा ओ वितरागी।।
सागर, झरना, झील, सरिता
पर्वत,घाटी दृश्य मनोरम
उषा की लाली मतवाली
हृदय नाचता छम छम छम
सब हैं सुंदर पर जाने क्यूं
बन न पाया मैं अनुरागी।
क्यों हुआ मेरा मन बैरागी।।
विश्वास मेरा दर्पण जैसा था
टूट के चकनाचूर हो गया
जीवन का हर सपना साथी
नैनों से अब दूर हो गया
कोई न जाने किस कारणवश
हो न सका मेरा सहभागी।
क्यों हुआ मेरा मन बैरागी।।
सूख गई इच्छा की सरिता
तूफानी अरमान थम गए
छोड़ के सारे नाते रिस्ते
हम बियाबानों में रम गए
कोई कहे अभागा मुझको
कोई कहे मुझको बड़भागी।
क्यों हुआ मेरा मन बैरागी।।
पता - स्टेशन रोड, महासमुन्द छत्तीसगढ़ - 493445
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