
जगन्नाथ ' विश्व ' के दो गीत
हो अवनि से शून्य तिमिर वातावरण।
प्रखर जाग उठा तेजस्वी नव जागरण।।
उड़ चले हैं पंछी दल फैलाए पंख,
नित किरणों को संदेश भेज रहे शंख,
प्रगति क्रम अनुकूल ढूंढना है उपकरण।
प्रखर जाग उठा तेजस्वी नव जागरण।
हँसे शस्य श्यामला का श्रृंगार - सृजन,
सूरजमुखी का जैसे प्रिय भोला बचपन,
पुलकित गुलाब सा चिर महके कण - कण।
प्रखर जाग उठा तेजस्वी नव - जागरण।
रामचरित - सेवा - व्रत श्रम बिन निस्सार,
लांघना है पवनपुत्र बाधा - सिंधु अपार,
राम राज के लिए राम काज ही निराकरण।
प्रखर जाग उठा तेजस्वी नव जागरण।
रश्मि प्रहर की प्रहरी
रश्मि प्रहर की प्रहरी भर प्राणों में प्राण।
तिमरान्ध निशा जीवन जीना है निष्प्राण।
नव युगारम्भ ज्योति वर्ष लाया सन्देश,
चिंता से मुक्त मनुज हो शोकाकुल क्लेश,
तोड़ मौन व्याघ्र गुफा कर नया प्रयाण।
रश्मि प्रहर के प्रहरी भर प्राणों में प्राण।
उतुंग - शिखर चढ़ता चल मानवी प्रबल,
ज्योति पथ बढ़ता चल नित्य प्रति पल,
स्वस्थ नई रोशनी से कर जग कल्याण।
रश्मि प्रहर के प्रहरी भर प्राणों में प्राण।
चिर - रुपान्तर भू पर हो स्वर्ग कल्पना,
प्रति गुंजित हो दिग दिगन्त विजय वंदना,
नव - श्रृष्टा अकुराये सृजन श्रम का प्रमाण।
रश्मि प्रहर के प्रहरी भर प्राणों में प्राण।
पता -
मनोबल, 25 एम.आई. जी., हनुमान नगर, नागदा जंक्सन - 456335
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