- राजेश जगने ' राज '
अपने हुनर को आज़माने चला हूं मैं।
फिसलती रेत पर घर बनाने चला हूं मैं।
चंद लम्हों की शमा बुझ जाने दो,
ज़मीं पर सुरुज उगाने चला हूं मैं।
जल रही मज़लूम लहु की आग से,
उफ़नते समंदर को सुखाने चला हूं मैं।
देख रहे हो बदन को मेरे पसीने तर,
बंजर ज़मीं को लहलहाने चला हूं मैं।
वो तो पत्थर सा सख्त हो गया है,
उलफ़त फ़ना कर पिघलाने चला हूं मैं।
गर सोया है इंसा तो सोने दो ' राज ' ,
इंसानी अज़मत को जगाने चला हूं मैं।
फिसलती रेत पर घर बनाने चला हूं मैं।
चंद लम्हों की शमा बुझ जाने दो,
ज़मीं पर सुरुज उगाने चला हूं मैं।
जल रही मज़लूम लहु की आग से,
उफ़नते समंदर को सुखाने चला हूं मैं।
देख रहे हो बदन को मेरे पसीने तर,
बंजर ज़मीं को लहलहाने चला हूं मैं।
वो तो पत्थर सा सख्त हो गया है,
उलफ़त फ़ना कर पिघलाने चला हूं मैं।
गर सोया है इंसा तो सोने दो ' राज ' ,
इंसानी अज़मत को जगाने चला हूं मैं।
- पता - स्टेशन पारा, 16 खोली, राजनांदगांव (छ. ग. ) पिन : 491 - 441
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें