- आनन्द तिवारी पौराणिक
चल रही लू सर- सर।
धूप के चढ़ गए हैं तेवर,
गुमसुम गली, चुप - से घर।
तृषा गहरी, थकन, उदासियाँ,
अलसाया तन, आ रही जम्हाइयां
धूप के चढ़ गए हैं तेवर,
गुमसुम गली, चुप - से घर।
तृषा गहरी, थकन, उदासियाँ,
अलसाया तन, आ रही जम्हाइयां
पढ़ रहा दिन, ग्रीष्म की हवाइयाँ।
प्यास की कविता, थकान के छन्द,
हवा में घुल रही, पसीने की गन्ध,
दिन ढले, कब चले पुरवाई मन्द।
सुस्त दुपहरी सी हुई सदी,
रेत का सागर हुई नदी,
मौसम का यह सप्तपढ़ी।
सांघ्य, दीप, दिन ढले जलेंगे,
बंद दरवाजे खिड़की खुलेंगे,
उजाले नये सपने रचेंगे।
प्यास की कविता, थकान के छन्द,
हवा में घुल रही, पसीने की गन्ध,
दिन ढले, कब चले पुरवाई मन्द।
सुस्त दुपहरी सी हुई सदी,
रेत का सागर हुई नदी,
मौसम का यह सप्तपढ़ी।
सांघ्य, दीप, दिन ढले जलेंगे,
बंद दरवाजे खिड़की खुलेंगे,
उजाले नये सपने रचेंगे।
- पता - श्री राम टाकीज मार्ग, महासमुन्द (छ. ग. ) पिन -493 445
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