1
हाथों के फूटेंगे छाले एक दिन
जायेंगे कुछ सिर उछाले एक दिन
हौसले जुगनुओं के देखिये
लड़के लायेंगे उजाले एक दिन
जुल्म खुद ही खुद दफन हो जायेगा
हाथों के पत्थर उठाले एक दिन
मुल्क से तब जायेगी ये गरीबी
होगा श्रृमिकों के हवाले एक दिन
तब ही होगी हर तरफ खुशहालियां
पेट भर खाये निवाले एक दिन
2
हमको सब मंजूर है अब
मंजिल बहुत दूर है अब।
चाहें जितना जुल्म करें
उनका नहीं कसूर है अब।
भ्रष्टाचार जड़ों तक है
पाला ये नासुर है अब
जब से सिंहासन पाया
रहबर मद से चूर है अब।
बेईमानों से लड़ने को
ये किसान मजबूर है अब।
पता - सावरकर वार्ड , कटनी (म.प्र.)
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