- पीसीलाल यादव -

जिनगी के दीया म, जांगर के बाती,
करम के तेल भर ओमा रे साथी।
सुरुज लुका जही, चंदा लजा जही,
तोर भरोसा अंजोरी दिन राती रे।।
ठलहा बइठइया बइठे रहि जाथे,
रेंगत रहिबे तेने ह बीरो ल पाथे।
रेंगथे संगी तेनेच ह तो गिरथे,
गिरथे सम्हलथे अ चंदा म चढ़ जाथे।।
दूबी कस हरिया, नीयत ल फरिया,
तोर हाथ हवय पुरखा के थाती रे।
आसा के जोती ल बरन दे टिम - टिम,
एखर अंजोर झन होवय रे मद्धिम।
सपना सिरतोन होही महिनत के बल म
जिनगी ल जगाए बर कर ले ग उदिम।
बिपत संग जोम दे, जिनगी ल होम दे,
आगू अंड़ा के बजूर छाती रे।
आलस तो आवय मनखे बर अजार,
जिनगी ल जर - मूल ले करथे उजार
बाँहा बल पथरा म पानी ओगरथे,
जेखर जांगर हे ओखरे सरग दुवार।
दुख म हाँस ले, सुख ल फाँस ले,
गुन गाही तोर बेटा अउ नाती रे।
- साहित्य कुटीर, गण्डई पण्डरिया, जिला - राजनांदगांव छत्तीसगढ़
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