कविता
- सुरेन्द्र अंचल -
आ ... क, थूँ ....ह
अरे, हवा के झोंको में
यह सड़े मांस की गंध
कहां से ?
आ ... क, थूँ ... ह
निठारी में मासूमों का
मांस सड़ रहा
बदबू दबा रहा है कौन ?
कौन पिशाच यह ?
कोख धधक रही मुलक की
कैसी ... धूं धूं
आ ... क, थूँ ... ह।
नसीराबाद में,
कन्याओं का खून चूसता
निर्भय खुल कर
कौन पिशाच यह?
बोलो पहरुओं,
मानवता के माथे यह टीका -
काला, किससे लगवाया
भोपाल का गहराया वह
कड़वा धूंवा नहीं छितराया
कि कारगिल की शांत
धरा को किसने पैने नखूनों से
नोच नोच कर खून बहाया
गजब हो गया।
देश की संसद बोखलाई,
संविधान की धड़कन
यो आतँकित क्यों ?
घृणा की इस वीभत्स हवस पर
थूकेंगी
सदी इक्कीसवीं थूं ... थू ... थू ...।
आ ... क, थूँ ... ह
- सुरेन्द्र अंचल -
आ ... क, थूँ ....ह
अरे, हवा के झोंको में
यह सड़े मांस की गंध
कहां से ?
आ ... क, थूँ ... ह
निठारी में मासूमों का
मांस सड़ रहा
बदबू दबा रहा है कौन ?
कौन पिशाच यह ?
कोख धधक रही मुलक की
कैसी ... धूं धूं
आ ... क, थूँ ... ह।
नसीराबाद में,
कन्याओं का खून चूसता
निर्भय खुल कर
कौन पिशाच यह?
बोलो पहरुओं,
मानवता के माथे यह टीका -
काला, किससे लगवाया
भोपाल का गहराया वह
कड़वा धूंवा नहीं छितराया
कि कारगिल की शांत
धरा को किसने पैने नखूनों से
नोच नोच कर खून बहाया
गजब हो गया।
देश की संसद बोखलाई,
संविधान की धड़कन
यो आतँकित क्यों ?
घृणा की इस वीभत्स हवस पर
थूकेंगी
सदी इक्कीसवीं थूं ... थू ... थू ...।
आ ... क, थूँ ... ह
- पता - 2/152, साकेत नगर, ब्यावर अजमेर, राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें