- भा. ला. श्रीवास्तव '' भारतीय'' -
आवारा हो रहे, मौसम के पदचाप
सूरज खुद उद्दंड है, धरती सहमी काँप
गुण्डागर्दी कर रही, गरम हवा की लू -
पिंजड़ा गरम सलाख का, मुँह से निकले भाप।
सूरज के उमंद से, फटते धरती के गाल
गांव गली और शहर में, गरम हवा की ज्वाल
कदम - कदम पर पूछती, गरमी सबको नाम
ब्रह्म्मफाँस में फांसते, मौसम के जंजाल
शीतल जल की खोज में, हिरनी मन अकुलात
पर्वत गुस्सा से तपे, गरम बात ही बात
जल की चूनर दरकने, होती है बेचैन
सूरज के जवरान से, रोनी नदिया दिन - रात।
पँख - पखेरू भटकते, ले सूरज की फरियाद
संकट में आ पड़ी है, मौसम की मरजाद
तरुवर पतझड़ में करे, रुदन बड़ा घनघोर
छिना सभी का चैन है, बचा नहीं आबाद
रपट नहीं लिखता कोई, खुद सूरज कोतवाल
गरम थपेड़े हाथ से, लाल कर रहा गाल
आगो के गोले गिरे, घात और प्रतिघात
घर - घर गरमी घुस गई, मचा है बवाल
- पता - एम . 22, हाउसिंग बोर्ड, राजनांदगांव (छ.ग.)
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