सुखबॉटे म सुघराथे जिनगी
- पीसीलाल यादव -
सुख बॉटे म सुघराथे जिनगी
जॉगर पेरे म उजराथे जिनगी।
काइसी, हिजगापारी इरखा म
गउँदन कस गुँगवाथे जिनगी।।
अंजोर तोरेच पोगरी नोहय,
परोसी के घलो हक ओमा।
तोर भरे के ढोली - ढाबा त
तैं बॉट दे ठोमा - ठोमा।।
मया - पिरीत तो पहाड़ा ये,
अन के दून दुहराथे जिनगी।
गर रेते गररेतिया कहाथे
अऊ मया बॉटे म मयारू।
जांगर के परसादे संगवारी
सोन उगलथे माटी - बारु।।
पसीना के ओगरे हरदम -
फुलवा कस ममहाथे जिनगी।
नंदिया - नरवा डोंगरी - टाठा
चिरई - चिरगुन मीत तोरे।
हवा - पानी ह हितु - पिरितु
रहि सब ले जिनगी जोरे।।
पुरसारथ के पलना म पल - पल
मनखे ल दुलराथे जिनगी।
मया पिरित जब पनके
मया पिरित जब पनके रे
मन - अंतस ह गमके रे।
गीत झरे होठ ले गुरतुर
पॉव म घुंघरु झनके रे।।
जांगर पेर पछीना ओगरा
जिनगी ल अपन सुघरा।
महल बरोबर सुख देथे
कांड़ी - कोरई के कुंदरा।।
तन के संवागा काम नी आवे
साज संवागा मन के रे ....।
मनखे उही मनखे आय,
जे सब ल अपनेच जानय।
पर के सुख - दुख ल जउन,
सउंहे अपनेच मानय।।
देखे मं आथे टूट जाथे ओ
रहिथे जे हा तन - तन के।
सौ बरस जिये करुवा के
तउनो तो घलो बेकार हे।
मया - पिरित के छिन भर ह
सौ - सौ जनम के सार हे।।
जिनगी के खेती म बों ले
करम के बीजहा घन के।
' साहित्य कुटीर ' गंडई-पंडरिया जिला - राजनांदगांव (छ.ग. )
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