- गणेश यदु -
जहां बसती भारत माता, वही तो मेरा गाँव है।
माटी के कण - कण में जहाँ, लक्ष्मी जी का पाँव है।।
भोर होते ही सूरज जहाँ किरणें बिखेरता है।
चिड़ियों की चहचहाहट से वातारण गूँजता है।।
आँगन बुहारती माँ, देखो स्वागत का भाव है।
रंभाते बछड़े अपनी माता को पुकारते है।
मिलते ही माँ बेटे - एक दूसरे को दूलारते हैं।।
गाय के दूध में निहित, जहाँ अमृत सा प्रभाव हैं ...।
कुँए से प्रात: पनिहारिन, जब पानी निकालती है।
घड़े और बल्टी के मिलन को जब निहारती है।।
सुख - दुख के एहसास का यह अंतर्मन का भाव है ...।
किलकारियाँ मारते बच्चे, गलियों में निकलते हैं।
बचपन के बाल खेलों में, खुश होकर मचलते हैं।।
सच्चे बाल मन में मनोविकारों से दुराव है ....।
कृषक कृषि कर करते माटी महतारी की सेवा।
ग्रीष्म, वर्षा - शीत के असर से बेअसर लोहे सा।।
पाँवों मे छाले फिर भी रुकते नहीं पाँव है ...
तालाब के मेड़ पर,पेड़ पीपल - बरगद के नीचे।
बैठे है भोले शंकर अपनी,आँखों को मीचे।।
सर्वदा सब कुछ देने को तत्परता का भाव है ...
चौपालों में होती है गोष्ठी, रात में रामायण।
मंडलियाँ कराती है जहाँ, राम - कथा रसास्वादन।।
अतिथियों को देवता समझते, ऋषियों का प्रभाव है ...
- पता - संबलपुर, जिला - कांकेर ( छत्तीसगढ़ )
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