( एक )
गाँव हुआ न मेरा शहर हुआ
क्यूं हर शय बेखबर हुआ
महफिल हो न सकी हमारी
अपना तो बस ये दोपहर हुआ
मुसाफिर की तरह चल रहें
चलना इधर - उधर हुआ
आफ़ताबे तब्जूम कैसे करे
खामोश हर सफर हुआ
मंजिल की तलाश रही पर
न बसेरा, न कोई घर हुआ
भीड़ ही दिखायी देती रही मुझे
तन्हा यहॉ हर शहर हुआ
क्यूं हर शय बेखबर हुआ
महफिल हो न सकी हमारी
अपना तो बस ये दोपहर हुआ
मुसाफिर की तरह चल रहें
चलना इधर - उधर हुआ
आफ़ताबे तब्जूम कैसे करे
खामोश हर सफर हुआ
मंजिल की तलाश रही पर
न बसेरा, न कोई घर हुआ
भीड़ ही दिखायी देती रही मुझे
तन्हा यहॉ हर शहर हुआ
( दो )
सोचने के लिए इक रात काफी है
जीने, चंद शाद - ए - हयात काफी है
यारो उनके दीदार के लिए देखना
बस इक छोटी सी मुलाकात काफी है
उनकी उलझन की शक्ल क्या है
कहने के लिए जज्ब़ात काफी है
बदलते इंसान की नियति में
यहॉ छोटा सा हालात काफी है
न दिखाओं आसमां अपना दिल
तुम्हारे अश्कों की बरसात काफी है
खुद को छुपाने के लिए ' सुकुमार '
चश्म की कायनात काफी है
- ' उदय आशियाना ' चौबेबांधा राजिम जिला- गरियाबंद, (छग.) - 493 885
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