- पं. विद्याभूषण मिश्र
मौसम के अधरों पर अभिनंदन छंद उगाते चल।
अंधकार पीती गलियों में दीप जलाते चल।
बाहर से भी बढ़कर लगता भीतर अँधियारा,
उलझन पोह रहा है चिन्तित मन का गलियारा,
झोली में फूलों के बदले कुछ पत्थर भरते,
अपने और पराये पन के भेद उभर पड़ते,
अँसुवाते नयनों में तू विश्वास जगाते चल।।
हैं झूठे अनुबंध नाव में अगर दरार कहीं,
रिश्ते - नाते सभी खोखले यदि है प्यार नहीं,
समाधान है गूंगे प्रश्रों का फिर क्या दोष?,
सुखद नहीं परिणाम जहाँ अस्तित्वहीन है रोष,
मटमैले सपनों को नव परिधान लुटाते चल।
कुछ गिरगिट पल - पल में अपना रुप बदल लेते,
कुछ संकल्पों के गर्दन को हैं मरोड़ देते,
कुछ अक्षत - चंदन से खुद को ही हैं पुजवाते,
दंभ पालते भीतर बाहर देव बने जाते,
नई रोशनी का दर्पण तू उन्हें दिखाने चल।
मन बन जायेगा वृंदावन साँस बने राधा,
अगर हृदय में है ममता तो नहीं कहीं बाधा,
गीत कृष्ण बन करके नाचे श्रद्धा बाँसुरिया,
छंद वृंद ही गोप वृंद हों रस की गागरिया,
झुकी कल्पना के घूँघट को पुन: उठाने चल।
अंधकार पीती गलियों में दीप जलाते चल।
बाहर से भी बढ़कर लगता भीतर अँधियारा,
उलझन पोह रहा है चिन्तित मन का गलियारा,
झोली में फूलों के बदले कुछ पत्थर भरते,
अपने और पराये पन के भेद उभर पड़ते,
अँसुवाते नयनों में तू विश्वास जगाते चल।।
हैं झूठे अनुबंध नाव में अगर दरार कहीं,
रिश्ते - नाते सभी खोखले यदि है प्यार नहीं,
समाधान है गूंगे प्रश्रों का फिर क्या दोष?,
सुखद नहीं परिणाम जहाँ अस्तित्वहीन है रोष,
मटमैले सपनों को नव परिधान लुटाते चल।
कुछ गिरगिट पल - पल में अपना रुप बदल लेते,
कुछ संकल्पों के गर्दन को हैं मरोड़ देते,
कुछ अक्षत - चंदन से खुद को ही हैं पुजवाते,
दंभ पालते भीतर बाहर देव बने जाते,
नई रोशनी का दर्पण तू उन्हें दिखाने चल।
मन बन जायेगा वृंदावन साँस बने राधा,
अगर हृदय में है ममता तो नहीं कहीं बाधा,
गीत कृष्ण बन करके नाचे श्रद्धा बाँसुरिया,
छंद वृंद ही गोप वृंद हों रस की गागरिया,
झुकी कल्पना के घूँघट को पुन: उठाने चल।
- पता - पुरानी बस्ती, ब्राहा्रण पारा, जांजगीर, (छ. ग.) मोबाईल - 96307 - 40634
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