- जितेन्द्र ' सुकुमार ' -
हमने उसके शहर में मकान खरीदे हैं।
बेजुबान होकर भी जुबान खरीदे हैं।
जिंदगी जैसे है वैसे दिखती नहीं बाबू ,
नाम वाले होकर भी पहचान खरीदे हैं।
मेरी क़ीमत आखिर तुम क्या लगावोगे,
हमने बाज़ार में सड़ रही ईमान खरीदे है।
हमारी बुलंदी देख ऐसा नहीं लगता क्या,
हम ज़मीं पर रहकर आसमान खरीदे हैं।
यहाँ कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता हुजूर,
रिश्वत में नारियल देकर भगवान खरीदे है।
हमने उसके शहर में मकान खरीदे हैं।
बेजुबान होकर भी जुबान खरीदे हैं।
जिंदगी जैसे है वैसे दिखती नहीं बाबू ,
नाम वाले होकर भी पहचान खरीदे हैं।
मेरी क़ीमत आखिर तुम क्या लगावोगे,
हमने बाज़ार में सड़ रही ईमान खरीदे है।
हमारी बुलंदी देख ऐसा नहीं लगता क्या,
हम ज़मीं पर रहकर आसमान खरीदे हैं।
यहाँ कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता हुजूर,
रिश्वत में नारियल देकर भगवान खरीदे है।
- पता - चौबेबांधा राजिम, जिला - रायपुर (छग.)
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