- विष्णु नागर -
धोबी का कुत्ता घर का, न घाट का। इस मुहावरे पर बहस हो रही थी। एक ने कहा -धोबी के कुत्ते की नियति पर हँसने वाले हम कौन?
दूसरे ने कहा- हाँ, हम कौन? हम भी तो कुत्ते - से हैं।
तीसरे ने कहा - कुत्ते -से मत कहो। कुत्ते हैं, कुत्ते। और धोबी के ही हैं। इस पर सब हँस पड़े और अपने - अपने घर चले गए और उस रात सब मजे से सो गए। अगले दिन फिर मिले। एक ने दूसरे को छेड़ दिया - और कुत्ते, मेरा मतलब धोबी के कुत्ते। इतना कहना था कि वह उस पर लात - घूंसों से पिल पड़ा। उसे मार - मार कर अधमरा कर दिया। हालांकि वह उनका मित्र था।
और हुआ यह कि सबने एक - दूसरे से मिलना बंद कर दिया। सबने माना कि सुख शांति से रहने का यही एकमात्र उपाय है।
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