- डॉ. रामशंकर चंचल -
वह नंगा
अधनंगा
नन्हें पैरो से दौड़ता
चढ़ जाता
मिट्टी के टीलों पर
मैं उसके पीछे
घने जंगलों से
भयभीत / हाँफता
थका सा
वह
मुझे देखता / मुस्काता
कभी मेरे किसी सवाल पर
हूं , हाँ , करता
देखने लग जाता
अजीब जिज्ञासा से,
वह
भोला / सहृदय
अज्ञान
चलता
बेधड़कर / निडर
निर्भीक
जैसे सारे जंगल का
गाँव का
वह
मालिक हो।
पता - मां, 145, गोपाल कालोनी, झाबुआ (म.प्र.) 457661
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