- श्याम च्च् अंकुर ज्ज् -
पूरी ना मन की करे, तेरे कामी नैन।
काटे से भी न कटे, अब तो बैरन रैन।
अब तो बैरन रैन, लगे हैं प्यासी - प्यासी।
तुझ बिन लगती खाली - खाली पूरणमासी।
नैना ताके हरदम झांके कैसी दूरी।
सुन ले हिम की मनसा पिय की कर दे पूरी।
कोई बचा ना आग से, झुलसा सारा देश।
आह, पीर, उदासियाँ, अब तो केवल शेष।
अब तो केवल शेष, सभी जन हैं कहते।
रोते - रोते पीड़ा ढोते सब - कुछ सहते।
घोटालों में चोटाले हैं जनता सोई।
ऊपर वाले जग में दुखिया है हर कोई।
रोना इसके भाग में, बेचारा है रंक।
महंगाई नित मारती, हरदम इसको डंक।
हरदम इसको डंक कहे यह किसके मन की।
महलों वाले लेकर भाले डाटें धन की।
सब कुछ फीका इसने सीखा केवल खोना।
तन पे कोड़ा फूटा फोड़ा आया रोना।
दर्पण बोले झूठ ना, बात सही यह मान।
तेरी करनी क्या रही, कर्मों को पहचान।
कर्मों को पहचान, यही है साधू कहते।
कहना मानो खुद को जानो सज्जन जगते।
सब कुछ धर दो इस पर कर दो जीवन अर्पण।
अपना यह मन जैसे चंदन कहता दर्पण।
हठीला भैरुजी की टेक,मण्डोला वार्ड, बारां - 325205
पूरी ना मन की करे, तेरे कामी नैन।
काटे से भी न कटे, अब तो बैरन रैन।
अब तो बैरन रैन, लगे हैं प्यासी - प्यासी।
तुझ बिन लगती खाली - खाली पूरणमासी।
नैना ताके हरदम झांके कैसी दूरी।
सुन ले हिम की मनसा पिय की कर दे पूरी।
कोई बचा ना आग से, झुलसा सारा देश।
आह, पीर, उदासियाँ, अब तो केवल शेष।
अब तो केवल शेष, सभी जन हैं कहते।
रोते - रोते पीड़ा ढोते सब - कुछ सहते।
घोटालों में चोटाले हैं जनता सोई।
ऊपर वाले जग में दुखिया है हर कोई।
रोना इसके भाग में, बेचारा है रंक।
महंगाई नित मारती, हरदम इसको डंक।
हरदम इसको डंक कहे यह किसके मन की।
महलों वाले लेकर भाले डाटें धन की।
सब कुछ फीका इसने सीखा केवल खोना।
तन पे कोड़ा फूटा फोड़ा आया रोना।
दर्पण बोले झूठ ना, बात सही यह मान।
तेरी करनी क्या रही, कर्मों को पहचान।
कर्मों को पहचान, यही है साधू कहते।
कहना मानो खुद को जानो सज्जन जगते।
सब कुछ धर दो इस पर कर दो जीवन अर्पण।
अपना यह मन जैसे चंदन कहता दर्पण।
हठीला भैरुजी की टेक,मण्डोला वार्ड, बारां - 325205
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