'' गणपति याचक'' राधेश्याम सिंह राजपूत
एक
कर्मयोगी
कलम
तुम्ही ने
कर्म
साधना
दी है
०००
जब - जब
भटकी
अंधकार में
ज्ञान
धर्म
की
धूरी
तब - तब
कलम
समय
की प्रहरी
घर घर
देती
फेरी
०००
दो
घर घर
देती
फेरी
देखो
कलम
रौशनी
मेरी
स्वयं
प्रकाशित
ज्ञान
मार्ग
हो
चले
लेखनी
मेरी
०००
निर्बल
को
बलवान
करूं
मैं
निर्धन
को
धन
दे दूं
घोर घमंडी
मानस मन को
कंस समझ
कर
रौंदू
०००
तीन
क लम
कल्पना
कविता
तुममें
कवि के
विमल
विचार
ललित
कलाओं में
मन - मोहन
करते
रास
बिहार
०००
करते
रास - बिहार
कलम
तुम
युग - युग
के अवतार
बड़े - बड़े
दुष्कर्म
विनाशे
लिख - लिख
ग्रंथ
हजार
०००
चार
लिख - लिख
ग्रंथ
हजार
कलम
ने
दिया
शब्द
संसार
कलम
ही
करम
धरम
व्यापार
कलम
को
नमन
करूं
सौ बार
०००
पांच
अक्षय तरकश
शब्दों
के
स्वर
लक्ष्य
साधना
मेरी
अर्जुन - सखा
कृष्ण कर्मों की
गूंज रही
रण भेरी
कौरिनभाठा
शिवकालोनी, शीतला मंदिर के पास
राजनांदगांव ( छ.ग.)
एक
कर्मयोगी
कलम
तुम्ही ने
कर्म
साधना
दी है
०००
जब - जब
भटकी
अंधकार में
ज्ञान
धर्म
की
धूरी
तब - तब
कलम
समय
की प्रहरी
घर घर
देती
फेरी
०००
दो
घर घर
देती
फेरी
देखो
कलम
रौशनी
मेरी
स्वयं
प्रकाशित
ज्ञान
मार्ग
हो
चले
लेखनी
मेरी
०००
निर्बल
को
बलवान
करूं
मैं
निर्धन
को
धन
दे दूं
घोर घमंडी
मानस मन को
कंस समझ
कर
रौंदू
०००
तीन
क लम
कल्पना
कविता
तुममें
कवि के
विमल
विचार
ललित
कलाओं में
मन - मोहन
करते
रास
बिहार
०००
करते
रास - बिहार
कलम
तुम
युग - युग
के अवतार
बड़े - बड़े
दुष्कर्म
विनाशे
लिख - लिख
ग्रंथ
हजार
०००
चार
लिख - लिख
ग्रंथ
हजार
कलम
ने
दिया
शब्द
संसार
कलम
ही
करम
धरम
व्यापार
कलम
को
नमन
करूं
सौ बार
०००
पांच
अक्षय तरकश
शब्दों
के
स्वर
लक्ष्य
साधना
मेरी
अर्जुन - सखा
कृष्ण कर्मों की
गूंज रही
रण भेरी
कौरिनभाठा
शिवकालोनी, शीतला मंदिर के पास
राजनांदगांव ( छ.ग.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें