ज्ञानेन्द्र साज
मुश्किल में है आवाम, चुप रहो
सरकार कर रही है काम, चुप रहो
मंहगाई बढ़ाने के लिए आज ही
पेट्रोल के बढ़ाए है दाम चुप रहो
सुबह रोटी है, शाम कुछ नहीं
बस यही है सुबहो - शाम, चुप रहो
एक अन्ना भूख से तड़पा किया
वो चाबे काजू - बादाम, चुप रहो
पेट गर खाली है तो खाली रहे
भर रहे उनके गोदाम, चुप रहो
वो विधाता है तुम्हारे भाग्य के
बस करो उनको सलाम, चुप रहो
जो नपुंसक की तरह जीती है साज
क्या करेगी वो आवाम , चुप रहो
संपादक ' जर्जर कश्ती '
17/ 212, जयगंज अलीगढ़
मुश्किल में है आवाम, चुप रहो
सरकार कर रही है काम, चुप रहो
मंहगाई बढ़ाने के लिए आज ही
पेट्रोल के बढ़ाए है दाम चुप रहो
सुबह रोटी है, शाम कुछ नहीं
बस यही है सुबहो - शाम, चुप रहो
एक अन्ना भूख से तड़पा किया
वो चाबे काजू - बादाम, चुप रहो
पेट गर खाली है तो खाली रहे
भर रहे उनके गोदाम, चुप रहो
वो विधाता है तुम्हारे भाग्य के
बस करो उनको सलाम, चुप रहो
जो नपुंसक की तरह जीती है साज
क्या करेगी वो आवाम , चुप रहो
संपादक ' जर्जर कश्ती '
17/ 212, जयगंज अलीगढ़
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