आचार्य सरोज द्विवेदी
मेरे देश में आता है, एक पर्व अंगारों का,
हर द्वार चमकने लगता है,
यह राजा है त्यौहारों का।
दीपक स्वयं धधकती ज्वाला
दीवाली उनकी कतार
मानव से दिल वालों को
मेरे देश में यह उपहार
बच्चे इस दिन खेल खेलते,
सूरज चाँद सितारों का।
दीप मार लेता है बाजी
अमावस की काली रात से
कोयला हीरा बन जाता है
किरणों की बरसात से
यह प्रकाश की पूजा है,
बलि है यह अंधियारों का।
कुटियों से लेकर महलों तक
इस रात चमकने लगते हैं
राजा रंक सभी इस दिन
नाना कुबेर के लगते हैं
लक्ष्मी स्वयं नाचती छमछम,
और ढेर कलदारों का।
मेरे देश में आता है, एक पर्व अंगारों का॥
मेरे देश में आता है, एक पर्व अंगारों का,
हर द्वार चमकने लगता है,
यह राजा है त्यौहारों का।
दीपक स्वयं धधकती ज्वाला
दीवाली उनकी कतार
मानव से दिल वालों को
मेरे देश में यह उपहार
बच्चे इस दिन खेल खेलते,
सूरज चाँद सितारों का।
दीप मार लेता है बाजी
अमावस की काली रात से
कोयला हीरा बन जाता है
किरणों की बरसात से
यह प्रकाश की पूजा है,
बलि है यह अंधियारों का।
कुटियों से लेकर महलों तक
इस रात चमकने लगते हैं
राजा रंक सभी इस दिन
नाना कुबेर के लगते हैं
लक्ष्मी स्वयं नाचती छमछम,
और ढेर कलदारों का।
मेरे देश में आता है, एक पर्व अंगारों का॥
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