आनंद तिवारी पौराणिक
सुधियों में खुशियों के पन्ने
रह जाते, तो क्या होता ?
प्यासे में मांगे कब पूर्ण पात्र
तृषा बुझे जल, इतना मात्र
खुशियों की क्यों हो लम्बी सदी
बस कूल किनारे, जल भरी नदी
मन की इस धारा में,
बह लेते तो क्या होता ?
पुष्प रहे पर गंध नहीं
गीतों में रस छंद नहीं
साम्राज्य अनन्त, व्यथा छाया
रस, प्राण - विहीन शुष्क काया
ये उपालम्भ के सपने
ढह जाते तो क्या होता ?
श्रीराम टाकीज मार्ग,महासमुंद (छ.ग.)
सुधियों में खुशियों के पन्ने
रह जाते, तो क्या होता ?
प्यासे में मांगे कब पूर्ण पात्र
तृषा बुझे जल, इतना मात्र
खुशियों की क्यों हो लम्बी सदी
बस कूल किनारे, जल भरी नदी
मन की इस धारा में,
बह लेते तो क्या होता ?
पुष्प रहे पर गंध नहीं
गीतों में रस छंद नहीं
साम्राज्य अनन्त, व्यथा छाया
रस, प्राण - विहीन शुष्क काया
ये उपालम्भ के सपने
ढह जाते तो क्या होता ?
श्रीराम टाकीज मार्ग,महासमुंद (छ.ग.)
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