डॉ . जवाहर लाल च्बेकसज्
लाठी माला और भुजाली आज हमारी बस्ती में।
कौन करें किसकी रखवाली आज हमारी बस्ती में॥
कटते पेड़ सिमटते जंगल आबादी बढ़ती अविराम।
धरती की उजड़ी हरियाली आज हमारी बस्ती में॥
दूषित हवा प्रदुषित पानी बे - मतलब का शोर यहॉ।
गंदी गली सड़क औ नाली आज हमारी बस्ती में॥
बिजली के इस चकाचौंध में हमने अंधापन खरीदा।
बिला दीप के सजी दीवाली आज हमारी बस्ती में॥
वस्त्रहीन नंगी औरत की जब लोगों पर नजर पड़ी।
घुटनों से वह बदन छुपा ली आज हमारी बस्ती में॥
उस बेचारी भलमानस को भूख ने जब अपहरण किया।
करती क्या इज्जत लुटवाती आज हमारी बस्ती में॥
इतने पर मत चौकों यारों एक हादसा और सुनो।
अस्मत भी देती है गाली आज हमारी बस्ती में॥
मंदिर मस्जिद यहां बने हैं प्यार मोहब्बत को दफना कर।
घर - घर देवी - दुर्गा - काली आज हमारी बस्ती में॥
कर्ण दधीचि हरिश्चन्द्र सा दानी होंगे कभी यहँा।
अब तो बचे हैं सिर्फ सवाली आज हमारी बस्ती में॥
कहीं पे रैली कहीं पे धरना कहीं बगावत का जलवा।
हठ करते दिखते हड़ताली आज हमारी बस्ती में॥
उस दिन जिसने खत भेजा था मुझसे व्याह रचाने को।
उसने भी वह खत मंगवा ली आज हमारी बस्ती में॥
उसकी बात करूं क्या च्बेकसज् सच कहना दुश्वार यहाँ।
मेरे मुंह पर भी दुनाली आज हमारी बस्ती में॥
संपादक - पनघट, रूपांकन, पो.बा.203, पटना - 800001
लाठी माला और भुजाली आज हमारी बस्ती में।
कौन करें किसकी रखवाली आज हमारी बस्ती में॥
कटते पेड़ सिमटते जंगल आबादी बढ़ती अविराम।
धरती की उजड़ी हरियाली आज हमारी बस्ती में॥
दूषित हवा प्रदुषित पानी बे - मतलब का शोर यहॉ।
गंदी गली सड़क औ नाली आज हमारी बस्ती में॥
बिजली के इस चकाचौंध में हमने अंधापन खरीदा।
बिला दीप के सजी दीवाली आज हमारी बस्ती में॥
वस्त्रहीन नंगी औरत की जब लोगों पर नजर पड़ी।
घुटनों से वह बदन छुपा ली आज हमारी बस्ती में॥
उस बेचारी भलमानस को भूख ने जब अपहरण किया।
करती क्या इज्जत लुटवाती आज हमारी बस्ती में॥
इतने पर मत चौकों यारों एक हादसा और सुनो।
अस्मत भी देती है गाली आज हमारी बस्ती में॥
मंदिर मस्जिद यहां बने हैं प्यार मोहब्बत को दफना कर।
घर - घर देवी - दुर्गा - काली आज हमारी बस्ती में॥
कर्ण दधीचि हरिश्चन्द्र सा दानी होंगे कभी यहँा।
अब तो बचे हैं सिर्फ सवाली आज हमारी बस्ती में॥
कहीं पे रैली कहीं पे धरना कहीं बगावत का जलवा।
हठ करते दिखते हड़ताली आज हमारी बस्ती में॥
उस दिन जिसने खत भेजा था मुझसे व्याह रचाने को।
उसने भी वह खत मंगवा ली आज हमारी बस्ती में॥
उसकी बात करूं क्या च्बेकसज् सच कहना दुश्वार यहाँ।
मेरे मुंह पर भी दुनाली आज हमारी बस्ती में॥
संपादक - पनघट, रूपांकन, पो.बा.203, पटना - 800001
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें