रमेश कुमार सोनी
1.
हाथों में
तरकारी और दूध के डिब्बे थामे
पसीने से लथपथ
निढाल शरीर
पके बाल वाला
वह बूढ़ा व्यक्ति
चश्मे से झांकता हुआ
रोज इस गली से गुजरता है।
हां, अब वह थक चुका है
उसने अपने कांधों पर
उठा रखा है
सत्तर वर्षीय बूढ़े वक्त को
न जाने किने जनाजे - डोलियाँ
कितनी मौत - कितनी जिंदगियाँ भी
उठाए हैं इन कांधों ने
जो अब भी मजबूत है
एटलस की भांति।
उसके पेंशन की राशि से ही
उठता है अब भी
उसके परिवार का बोझ
हां, पके बाल बता देते हैं
किस रिश्तेदार का
कांधा मजबूत है उसके
श्मशान यात्रा के लिए
किन्तु अंतिम यात्रा से पहले
उसे लगता है कि -
अब वह पुन: जवान हो रहा है
गृहस्थी की जर्जर गाड़ी खींचने॥
2.
मंहगाई, भूखमरी से
अब भी वह लड़ता है
पूरे जोश से
एक पूरी जिंदगी
बीत जाने के बाद भी
समाप्त नहीं होती समस्याएं
बल्कि बढ़ती ही जाती हैं
बदस्तुर
अमरबेल की तरह
हां, अब भी वह
सपने देखता है
उसके सुखी परिवार का।
किसी कोने में पड़ा
सांखता - खंखारता बूढ़ा
अचानक मंूद लेगा आँखें
तब भी उसका परिवार और दूनिया
शायद चलती रहेगी किन्तु
किसी न किसी का तो
कुछ बिगड़ेगा जरूर ही
वह कुत्ता
उस दिन भूखा ही सोएगा
जो उसके दिए हुए
रोटी के टूकड़ों पर पलता था।
वह कुछ लोग
मातमी चेहरे लिए जश्न भी मनांएगे
कि पहरा हटा तो सही
क्योंकि बूढ़ी आँखें ' नि:शब्द '
सब कुछ नियंत्रित कर लेती थी॥
जे.पी. रोड,किसान राईस मिल के पास,बसना ( छ.ग.)
1.
हाथों में
तरकारी और दूध के डिब्बे थामे
पसीने से लथपथ
निढाल शरीर
पके बाल वाला
वह बूढ़ा व्यक्ति
चश्मे से झांकता हुआ
रोज इस गली से गुजरता है।
हां, अब वह थक चुका है
उसने अपने कांधों पर
उठा रखा है
सत्तर वर्षीय बूढ़े वक्त को
न जाने किने जनाजे - डोलियाँ
कितनी मौत - कितनी जिंदगियाँ भी
उठाए हैं इन कांधों ने
जो अब भी मजबूत है
एटलस की भांति।
उसके पेंशन की राशि से ही
उठता है अब भी
उसके परिवार का बोझ
हां, पके बाल बता देते हैं
किस रिश्तेदार का
कांधा मजबूत है उसके
श्मशान यात्रा के लिए
किन्तु अंतिम यात्रा से पहले
उसे लगता है कि -
अब वह पुन: जवान हो रहा है
गृहस्थी की जर्जर गाड़ी खींचने॥
2.
मंहगाई, भूखमरी से
अब भी वह लड़ता है
पूरे जोश से
एक पूरी जिंदगी
बीत जाने के बाद भी
समाप्त नहीं होती समस्याएं
बल्कि बढ़ती ही जाती हैं
बदस्तुर
अमरबेल की तरह
हां, अब भी वह
सपने देखता है
उसके सुखी परिवार का।
किसी कोने में पड़ा
सांखता - खंखारता बूढ़ा
अचानक मंूद लेगा आँखें
तब भी उसका परिवार और दूनिया
शायद चलती रहेगी किन्तु
किसी न किसी का तो
कुछ बिगड़ेगा जरूर ही
वह कुत्ता
उस दिन भूखा ही सोएगा
जो उसके दिए हुए
रोटी के टूकड़ों पर पलता था।
वह कुछ लोग
मातमी चेहरे लिए जश्न भी मनांएगे
कि पहरा हटा तो सही
क्योंकि बूढ़ी आँखें ' नि:शब्द '
सब कुछ नियंत्रित कर लेती थी॥
जे.पी. रोड,किसान राईस मिल के पास,बसना ( छ.ग.)
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