जितेन्द्र कुमार साहू ' सुकुमार'
चार दीवारों के बीच घिरे
हुए लोग क्या जानेंगे
शीशा तो शीशा है यारो,
मोती क्या पहचानेंगे
जाकर देखो देख की उज्जवल
भविष्य क्या होती है
फूटपाथ पर पड़े बच्चे
बिखरे हुए मोती है
स्वयं नंगे चलते है बेचारे
जिसको हासिल कफन तक नहीं है
ठोकरों से भरते पेट
तकदीर में चमन तक नहीं है
जिन्हें लावारिस समझकर
धुत्तकार दिया जाता है
फूटपाथ ही इनकी जिन्दगी
जो बिखरे फूलों को सजाता है।
चौबेबांधा, राजिम, जिला - रायपुर ( छग.)
चार दीवारों के बीच घिरे
हुए लोग क्या जानेंगे
शीशा तो शीशा है यारो,
मोती क्या पहचानेंगे
जाकर देखो देख की उज्जवल
भविष्य क्या होती है
फूटपाथ पर पड़े बच्चे
बिखरे हुए मोती है
स्वयं नंगे चलते है बेचारे
जिसको हासिल कफन तक नहीं है
ठोकरों से भरते पेट
तकदीर में चमन तक नहीं है
जिन्हें लावारिस समझकर
धुत्तकार दिया जाता है
फूटपाथ ही इनकी जिन्दगी
जो बिखरे फूलों को सजाता है।
चौबेबांधा, राजिम, जिला - रायपुर ( छग.)
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