मोह.मुइनुद्दीन ' अतहर '
बड़ी हैरत से अरबाबे - कलम को देखता हूं मैं
जिधर भी देखता हूं चश्मे - नम को देखता हूं मैं
खुदा मालूम किस शै की है ख्वाहिश दीदए - तर को
मैं दिल में किस सितमगर के सितम को देखता हूं मैं
बिछा दी मैंने पलकों की चटाई राह में उनकी
कभी खुद को कभी अपने सनम को देखता हूं मैं
बहारों से कहो जाकर इधर भी रूख करें अपना
खिजाँ का दौर ही गुलशन मं हरदम देखता हूं मैं
मेरा जौ के - जुनूं ले आया मुझको बजमें सकी में
कदरदानों की महफिल में करम को देखता हूं मैं
मेरे अशआर जिस दिल को कभी मखमूर रखते थे
उसी दिल में मसर्रत की जगह गम देखता हूं मैं
नुमायां जर्रे - जर्रे में है सूरत यार की अतहर
तबस्सुम रेज हर शै में सनम देखता हूं मैं
बड़ी हैरत से अरबाबे - कलम को देखता हूं मैं
जिधर भी देखता हूं चश्मे - नम को देखता हूं मैं
खुदा मालूम किस शै की है ख्वाहिश दीदए - तर को
मैं दिल में किस सितमगर के सितम को देखता हूं मैं
बिछा दी मैंने पलकों की चटाई राह में उनकी
कभी खुद को कभी अपने सनम को देखता हूं मैं
बहारों से कहो जाकर इधर भी रूख करें अपना
खिजाँ का दौर ही गुलशन मं हरदम देखता हूं मैं
मेरा जौ के - जुनूं ले आया मुझको बजमें सकी में
कदरदानों की महफिल में करम को देखता हूं मैं
मेरे अशआर जिस दिल को कभी मखमूर रखते थे
उसी दिल में मसर्रत की जगह गम देखता हूं मैं
नुमायां जर्रे - जर्रे में है सूरत यार की अतहर
तबस्सुम रेज हर शै में सनम देखता हूं मैं
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