हरीराम पात्र
राष्ट्र पुरूष को आज चाहिए, राष्ट्र रक्षक संतान।
सब यत्नों के यज्ञ देव से माँग रहा वरदान॥
देख दशा दशरथ की चिंता, देश पे कर विचार।
आजादी के अवध में अब तू, राम का ले अवतार॥
शिक्षा और संस्कार को लेकर, कर अपना श्रृंगार।
समाज के दर्पण में अपना, रूप को देख निहार॥
करूणा की कैकई कहती, जा तू वन की ओर।
कष्टïों के कंटक पथ चलकर, कर उपकार की भोर॥
ले चल अपने चंचल मन को, चित्रकूट चित घाट।
जन सेवा कर चंदन घिस ले, लगा तिलक धुल - माथ॥
संतप्त पतित शोषित है जन, शोषण के वन उदास।
प्रेम सुधा भर कर के प्याला, ले चल उनके वास॥
दीन दुखी का दुख है, तोहफा कर उसे स्वीकार।
मानवता के मालिक बनकर बदले में दे प्यार॥
कर्म कंध में रखले अपने फर्ज के धनुष बान।
आप पे कर संधान धनुष और लगा लक्ष्य में बान॥
सत्पथ चल कर देख शाँति की, साथ रहेगी सीता।
इसको खो कर विरही - विरह आग में जलकर जीता॥
लखन रहेगा सदा पास में, तेरे ज्ञान के साथ।
दुख के दुष्टï संहार करेगा, धनुष बाण ले हाथ॥
भरत भी आए भय का तुझे मनाने पर न मान।
तेरे साहस के साथ में होंगे, साधु संत महान॥
ग्राम - राऊरवाही, वि.ख. दुर्गुकोंदल ( छ .ग .)
राष्ट्र पुरूष को आज चाहिए, राष्ट्र रक्षक संतान।
सब यत्नों के यज्ञ देव से माँग रहा वरदान॥
देख दशा दशरथ की चिंता, देश पे कर विचार।
आजादी के अवध में अब तू, राम का ले अवतार॥
शिक्षा और संस्कार को लेकर, कर अपना श्रृंगार।
समाज के दर्पण में अपना, रूप को देख निहार॥
करूणा की कैकई कहती, जा तू वन की ओर।
कष्टïों के कंटक पथ चलकर, कर उपकार की भोर॥
ले चल अपने चंचल मन को, चित्रकूट चित घाट।
जन सेवा कर चंदन घिस ले, लगा तिलक धुल - माथ॥
संतप्त पतित शोषित है जन, शोषण के वन उदास।
प्रेम सुधा भर कर के प्याला, ले चल उनके वास॥
दीन दुखी का दुख है, तोहफा कर उसे स्वीकार।
मानवता के मालिक बनकर बदले में दे प्यार॥
कर्म कंध में रखले अपने फर्ज के धनुष बान।
आप पे कर संधान धनुष और लगा लक्ष्य में बान॥
सत्पथ चल कर देख शाँति की, साथ रहेगी सीता।
इसको खो कर विरही - विरह आग में जलकर जीता॥
लखन रहेगा सदा पास में, तेरे ज्ञान के साथ।
दुख के दुष्टï संहार करेगा, धनुष बाण ले हाथ॥
भरत भी आए भय का तुझे मनाने पर न मान।
तेरे साहस के साथ में होंगे, साधु संत महान॥
ग्राम - राऊरवाही, वि.ख. दुर्गुकोंदल ( छ .ग .)
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