संतोष प्रधान कचंदा
सृष्टि की श्रेष्टतम कृति, सबल सशक्त नारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
अबला नहीं, सबला हो , तुम हो बलवती,
धरा गगन पर राज कर, बनकर बुद्धिवती,
खुद को पहचान जरा, जग के महतारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
दुनिया ताके तेरी ओर, तुम हो जगत जननी,
बाधाओं का वध कर दो, बन विध्र विनाश करनी,
दो मिशाल जग को, जगत के राज दुलारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
दिल में तूफान भर लो, मन में भर लो आग,
रोना - धोना बस कर बंद, जगा लो अपनी भाग,
देश हित नित कर्म कर,छोड़ों सब लाचारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
शोषित, अभिशप्त किया, दुष्प्रथाओं ने बांधकर,
नित नया दुराचर सहा, अपने को मारकर,
अब न सह अत्याचार, बन मत बेचारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
मु. - कचंदा, पो- झरना,व्हाया - बाराद्वार, जि- जांजगीर
सृष्टि की श्रेष्टतम कृति, सबल सशक्त नारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
अबला नहीं, सबला हो , तुम हो बलवती,
धरा गगन पर राज कर, बनकर बुद्धिवती,
खुद को पहचान जरा, जग के महतारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
दुनिया ताके तेरी ओर, तुम हो जगत जननी,
बाधाओं का वध कर दो, बन विध्र विनाश करनी,
दो मिशाल जग को, जगत के राज दुलारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
दिल में तूफान भर लो, मन में भर लो आग,
रोना - धोना बस कर बंद, जगा लो अपनी भाग,
देश हित नित कर्म कर,छोड़ों सब लाचारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
शोषित, अभिशप्त किया, दुष्प्रथाओं ने बांधकर,
नित नया दुराचर सहा, अपने को मारकर,
अब न सह अत्याचार, बन मत बेचारी।
जल - थल - आकाश का, बन जा तू अधिकारी॥
मु. - कचंदा, पो- झरना,व्हाया - बाराद्वार, जि- जांजगीर
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