- डॉ. रामशंकर चंचल -
बरसाती सर्द रात, सांय - सांय करते वीरान जंगल, ऊची पहाड़ियाँ और इन पहाड़ियों पर बसी झोपड़ियों में निवास करते भोले - भाले आदिवासी। बीस - पच्चीस झोपड़ियों का यह गाँव रोशन नगर कहलाता है। यद्यपि रोशनी के नाम पर इन सहृदय आदिवासियों ने सिर्फ चांद सूरज की रोशनी देखी है। पता नहीं, क्या सोच कर वर्षों से अंधेरे के श्राप में जी रहे इस गाँव का नाम रोशननगर रख दिया। बरसती सर्द रातों में कुछ खेतों में ही दिखाई देती है रोशनी। वह रोशनी जिसे जलाकर करते हैं सारी रात खेतों की रखवाली। वह अलाव आग उन्हें रोशनी भी देती और ठंड से लड़ने का साहस भी। आज कड़कड़ाती ठंड से बचने के लिए मंगलिया ने अलाव जलाया और बैठ गया पास में अपना जिस्म गरमाने। दिन भर की मेहनत के बाद रात भर फिर जगना बहुत मुश्किल होता है। फिर भी मंगलिया बीड़ी जला कर धुआँ उड़ाते, जैसे तैसे नींद से लड़ रहा था। आखिर जब वह कुछ ज्यादा ही थकान महसूस करने लगा तो समीप रखी खटिया पर कुछ देर सुस्ताने के लिए लेट गया। पता नहीं कब नींद आ गई। इधर तूफानी हवा चली और अलाव की आग मंगलिया की झोपड़ी में लग गई। बस फिर क्या था, देखते ही देखते झोपड़ी भभक उठी। जिसे देख मंगलिया के बीबी - बच्चे चिल्लाने लगे। शोर से मंगलिया की नींद में खलल पड़ी वह उठा और देखा तो आँखें फटी की फटी रह गई। उसका घर जल रहा था। मंगलिया पागलों की तरह चिल्लाता हुआ दौड़ा पर वह झोपड़ी थी, आखिर कितना दम भरती? सब कुछ आग में भस्म हो गया। दिन - रात श्रम करके, मेहनत और ईमानदारी से बीवी - बच्चों का पोषण करने वाले सहृदय मंगलिया का सब कुछ स्वाहा हो गया था पर अगले दिन फिर मंगलिया काम पर जाने को तैयार था, उसे फिर से झोपड़ी जो बसानी थी। गांधी बाड़ा, हमालपारा, वार्ड नं. 23 राजनांदगांव (छ.ग.)पिन कोड 491441। मो. 94077-60700
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