- पं. रमाकांत शर्मा -
जिन्दगी की आग में
चढ़ा हुआ कड़ाव था
पक रहा तरह - तरह
कलेवों का जुड़ाव था।
हम समझते रह गये,
खमीर का सड़ाव था
हम जहाँ खड़े रहे
बाद फिर चढ़ाव था।
आँख जब खुली तभी
स्वप्न का झड़ाव था
महल समझते रह गये
यह तो एक पड़ाव था।
7/ 31, गंगा कृपा, ब्राहा्रणपारा
छुईखदान, जिला - राजनांदगांव ( छग)
जिन्दगी की आग में
चढ़ा हुआ कड़ाव था
पक रहा तरह - तरह
कलेवों का जुड़ाव था।
हम समझते रह गये,
खमीर का सड़ाव था
हम जहाँ खड़े रहे
बाद फिर चढ़ाव था।
आँख जब खुली तभी
स्वप्न का झड़ाव था
महल समझते रह गये
यह तो एक पड़ाव था।
7/ 31, गंगा कृपा, ब्राहा्रणपारा
छुईखदान, जिला - राजनांदगांव ( छग)
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