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अँचरा खण्ड में मातृभूमि के प्रति ममता व समर्पण के साथ - साथ उसकी समृद्धि व गौरव की भावनाएँ भी व्यक्त की गई है। उत्थान का एक नया सूर्य उगाने के लिये कवि आह्वान करते हैं -
धर ले रे कुदारी गा किसान
आज डिपरा ला खनके
डबरा पाट देबो रे।
माँ सरस्वती से आराधना करते हुए उनकी प्रार्थना सीमित दायरों में नहीं सिकुड़ती, वे विश्व को केन्द्र में रखकर सोचते हैं और कहते हैं कि -
सरी जगत के मनखे भीतर
ज्ञान के दियना बार दे।
जै होय मइया सारदे।।
छत्तीसगढ़ी में कायाख्ण्डी गीत बड़े लोकप्रिय रहे हैं इसी तर्ज पर द्वितीय खण्ड सुन संगवारी में कवि की रचनाएं संतवाणी की तरह दार्शनिक भावों की अभिव्यक्ति करती है। वे कहते हैं -
तन ह तमूरा हावै साँसा हे तार
बाजत हे संगी समे के करतार
हावै जिनगी भजन दूए दिन के
रे भइया करतार बाजै
संगी दूए दिन के रे भइया
करतार बाजै संगी
पल - छिन के पृष्ट 49
संग्रह का तृतीय खण्ड आखर के अँगना कवि की वैचारिक सम्पन्नता के साथ उनकी रचनात्मक सिद्धि को प्रतिपादित करता हुआ वास्तव में आग्रेय अक्षरों का एक ऐसा खण्ड है जिसमें देश, समाज और जीवन में व्याप्त अनाचार, भ्रष्टाचार, शोषण, अनीति, अमानवीयता, गरीबी एवं स्वार्थपरता इत्यादि का दिग्दर्शन कराते हुए यथार्थ का उद्घाटन किया गया है।
प्रदुषित समाज का चित्रण करते हुए कवि वास्तविकता को किस तरह प्रदर्शित करते हैं, दृष्टव्य है -
मनखे के मरजाद बेचागै
अउ बजार ला पता नइ चलिस
राउत खुद बरदी ला ढीलिस
चुमड़ी अपने चारा लीलिस
देखत मा गउठान गंवागै,
ठेठवार ला पता नइ चलिस पृष्ट 74
अनेक महत्वपूर्ण विविधताओं को स्वयं में समेटे हुए इस काव्य संग्रह के चतुर्थ खण्ड हमर भुइयाँ हमर अगास में छत्तीसगढ़ प्रदेश के निर्माण का उल्लास और आशा तथा विश्वास के साथ नवजागरण का आहवान भी है।
बजुर देंह पखराकस जाँगर
खाँध मा बोहे हावय नाँगर
पागा मा चोंगी खोंचे अउ
झोला भितरी धरे अंगाकर
हरियर मिरचा नून संग मा
चानी धरे अथान।
होगे हवै बिहान रे संगी
होगे हवै बिहान।। पृष्ट 107
इस खण्ड में भी गाँव, प्रकृति, पर्व, वर्षा, कृषि, प्रभात, रतनजोत, बायोडीजल, डोंगरगढ़ यात्रा, अक्षर का उजाला, जल संग्रहण एवं वसंत ऋतु सहित जनउला गीत का एक विलक्षण और अनूठा प्रयोग भी है। पुस्तक के अंत में छत्तीसगढ़ी मुक्तक है।
आचार्य महेशचन्द्र शर्मा, डॉ. नारायण लाल परमार, डॉ. विजय कुमार सिन्हा, जमुना कसार एवं डॉ. परदेशीराम वर्मा की सारगर्भिता संक्षिप्त टिप्पणियाँ एवं डॉ. बल्देव जैसे दिग्गज आलोचक सहित डॉ. सुधीर शर्मा तथा परमेश्वर वैष्णव की विद्वतापूर्ण भूमिकाओं ने छत्तीसगढ़ी काव्य जगत में कवि मुकुन्द कौशल के महत्व को अन्तर्मन से उद्घोषित किया है। छत्तीसगढ़ी के काव्य रसिक पाठकों व कलाकारों के लिये यह संग्रह पठनीय और संग्रहणी है।
- -समीक्षक - सुनीता तिवारी -
अँचरा खण्ड में मातृभूमि के प्रति ममता व समर्पण के साथ - साथ उसकी समृद्धि व गौरव की भावनाएँ भी व्यक्त की गई है। उत्थान का एक नया सूर्य उगाने के लिये कवि आह्वान करते हैं -
धर ले रे कुदारी गा किसान
आज डिपरा ला खनके
डबरा पाट देबो रे।
माँ सरस्वती से आराधना करते हुए उनकी प्रार्थना सीमित दायरों में नहीं सिकुड़ती, वे विश्व को केन्द्र में रखकर सोचते हैं और कहते हैं कि -
सरी जगत के मनखे भीतर
ज्ञान के दियना बार दे।
जै होय मइया सारदे।।
छत्तीसगढ़ी में कायाख्ण्डी गीत बड़े लोकप्रिय रहे हैं इसी तर्ज पर द्वितीय खण्ड सुन संगवारी में कवि की रचनाएं संतवाणी की तरह दार्शनिक भावों की अभिव्यक्ति करती है। वे कहते हैं -
तन ह तमूरा हावै साँसा हे तार
बाजत हे संगी समे के करतार
हावै जिनगी भजन दूए दिन के
रे भइया करतार बाजै
संगी दूए दिन के रे भइया
करतार बाजै संगी
पल - छिन के पृष्ट 49
संग्रह का तृतीय खण्ड आखर के अँगना कवि की वैचारिक सम्पन्नता के साथ उनकी रचनात्मक सिद्धि को प्रतिपादित करता हुआ वास्तव में आग्रेय अक्षरों का एक ऐसा खण्ड है जिसमें देश, समाज और जीवन में व्याप्त अनाचार, भ्रष्टाचार, शोषण, अनीति, अमानवीयता, गरीबी एवं स्वार्थपरता इत्यादि का दिग्दर्शन कराते हुए यथार्थ का उद्घाटन किया गया है।
प्रदुषित समाज का चित्रण करते हुए कवि वास्तविकता को किस तरह प्रदर्शित करते हैं, दृष्टव्य है -
मनखे के मरजाद बेचागै
अउ बजार ला पता नइ चलिस
राउत खुद बरदी ला ढीलिस
चुमड़ी अपने चारा लीलिस
देखत मा गउठान गंवागै,
ठेठवार ला पता नइ चलिस पृष्ट 74
अनेक महत्वपूर्ण विविधताओं को स्वयं में समेटे हुए इस काव्य संग्रह के चतुर्थ खण्ड हमर भुइयाँ हमर अगास में छत्तीसगढ़ प्रदेश के निर्माण का उल्लास और आशा तथा विश्वास के साथ नवजागरण का आहवान भी है।
बजुर देंह पखराकस जाँगर
खाँध मा बोहे हावय नाँगर
पागा मा चोंगी खोंचे अउ
झोला भितरी धरे अंगाकर
हरियर मिरचा नून संग मा
चानी धरे अथान।
होगे हवै बिहान रे संगी
होगे हवै बिहान।। पृष्ट 107
इस खण्ड में भी गाँव, प्रकृति, पर्व, वर्षा, कृषि, प्रभात, रतनजोत, बायोडीजल, डोंगरगढ़ यात्रा, अक्षर का उजाला, जल संग्रहण एवं वसंत ऋतु सहित जनउला गीत का एक विलक्षण और अनूठा प्रयोग भी है। पुस्तक के अंत में छत्तीसगढ़ी मुक्तक है।
आचार्य महेशचन्द्र शर्मा, डॉ. नारायण लाल परमार, डॉ. विजय कुमार सिन्हा, जमुना कसार एवं डॉ. परदेशीराम वर्मा की सारगर्भिता संक्षिप्त टिप्पणियाँ एवं डॉ. बल्देव जैसे दिग्गज आलोचक सहित डॉ. सुधीर शर्मा तथा परमेश्वर वैष्णव की विद्वतापूर्ण भूमिकाओं ने छत्तीसगढ़ी काव्य जगत में कवि मुकुन्द कौशल के महत्व को अन्तर्मन से उद्घोषित किया है। छत्तीसगढ़ी के काव्य रसिक पाठकों व कलाकारों के लिये यह संग्रह पठनीय और संग्रहणी है।
- पता - सुभाष नगर, दुर्ग (छग.)
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